मोदी को होगा भारी नुकसान वर्ष 2019 के आम चुनावों में आसान नहीं रह गई अब राह ।

ताजा – ताजा पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों को कुछ माह बाद देश में होने वाले आम चुनाव का सेमीफाइनल भी माना जा रहा है । राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीशगढ़ में आए नतीजों से मृतप्राय समझी जा रही कांग्रेस की बांछें खिल गई है । और खिलनी भी चाहिए क्योंकि जीत छोटी हो या बड़ी खुशी व उम्मीद की प्रतीक भी होती है और अब कांग्रेस के साथ- साथ देश में बिखरा हुआ विपक्ष फिर से एकजुट होने की कोशिश कर रहा है ताकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा संचालित सत्ता को बेदखल किया जा सके ।
पांचों राज्यों में आए चौकाने वाले परिणामों के बाद कांग्रेस व अन्य पार्टियों के नेता इसे केंद्र सरकार की बड़ी बड़ी नीतियों की विफलता के साथ ही जनता का गुस्सा भी बता रहे हैं ।

मैं इस रिपोर्ट को नेताओं के आरोप प्रत्यारोपों के आधार में चीर – फाड़ नहीं कर रहा हूँ । बल्कि 2014 के बाद लगातार गिरती हुई भाषाई मर्यादा और उन्मादी माहौल को भी बड़ा कारण मानते हुए आगे का दृश्य देख रहा हूँ और इतना ही नहीं जिस भाषा और मर्यादा की मैं बात कर रहा हूँ उसके ऊपर मैंने अक्टूबर माह में ही फेसबुक पर एक पोस्ट लिख दी थी और आशंका जताई थी कि हिंदी भाषी राज्यों में भाजपा को सोशल मीडिया पर की गई गाली गलौच का भी नुकसान भुगतना पड़ सकता है । और इसमें भाजपा का दोष या सरकार की नीतियों का दोष कम और भक्त बने समर्थकों के अराजक व उन्मादी व्यवहार के प्रति वोटरों का गुस्सा ज्यादा दिखाई देगा ।

दरअसल कुछ समय से आप सभी पाठक जन महसूस कर रहे होंगे कि सोशल मीडिया पर मोदी के तथाकथित समर्थकों ने एक अजीब सा माहौल देश मे बना दिया है जो हर वर्ग, हर स्तर व हर ओहदे के व्यक्ति को आए दिन अपने पाले में नही पाते हैं तो सब उस पर भूखे भेड़ियों की तरह टूट पड़ते हैं । यह मसला कई बार भाजपा के नेताओं के सामने रखी भी जा चुकी है लेकिन इस भाषा और अशिष्ट व्यवहार को भाजपा का नेतृत्व भी स्वीकार नही करता है और न ही करना चाहिए । लगे हाथ अब कांग्रेस या अन्य दलों के समर्थक भी पीछे नहीं हैं वो सब भी बिल्कुल उसी ट्रेंड पर चल पड़े हैं । अब यह कहना या लिखना भी अनुचित नहीं होगा कि भाषाई मर्यादा पतन पहले भक्तजनों की ओर से आरंभ हुआ जो अब धीरे-धीरे सभी दलों को संक्रमित कर गया है । जिससे राजनीतिक दलों को सींचने के चक्कर में हिंदुस्तान की सभ्यता और संस्कृति भी नष्ट होती दिखाई दे रही है । हममें से भारत के प्रत्येक नागरिक को यह मानना होगा कि भारत देश की सभ्यता , संस्कृति , तमीज़ व तहजीब के दीवाने सात समुद्र पार के लोग भी हैं और उसके पीछे कारण है भारत की शालीन व मर्यादित भाषा है और यहां का रहन सहन भाई चारा , परन्तु वर्तमान दौर में जो दिखाई दे रहा है उससे तो भविष्य के भारत की बेहद खौफजदा तस्वीर दिख रही है । सोशल मीडिया इस अराजकता का अड्डा बन गया है । सरकार को इस दिशा में भी सख्त नकेल कसने की तैयारी करनी चाहिए ।
बुरा न माने विरोध या समर्थन शिष्ट शब्दों का चयन करके भी किया जा सकता है । ध्यान दीजिए तथाकथित भक्तों की शब्दावली मोदी जी से लोगों को विमुख कर रही है । जबकि मैं भी मानता हूं कि प्रधानमंत्री मोदी बहुत कुछ अच्छा भी कर रहे हैं । प्रधानमंत्री मोदी या उनकी सरकार देश में कहीं भी कुछ ऐसा अनर्थ नहीं करने जा रही है जिससे देश डूबता हुआ दिखाई दे रहा हो । मोदी सरकार भी जनता द्वारा चुनी लोकतांत्रिक सरकार है और वह हर वो काम करने की कोशिश में है जो जनता के हित में होने के साथ साथ उनकी फिर सत्ता में वापसी का जरिया भी हो और यह अर कोई राजनेता या दल करते हैं व करते रहेंगे । परन्तु हमारी सरकारों को अराजकता पर भी बेहद ध्यान देने की सख्त जरूरत है ।
मैं समझता हूं कि वर्ष 2019 के आम चुनावों में लोगों का गुस्सा मोदी या उनकी सरकार से नहीं बल्कि अशिष्ट भक्तों की अराजक भाषा शैली से भी होने वाला है । और मुझे लगता है काफी हद तक इस अशिष्टता का जबाब राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, मिजोरम व तेलंगाना में भी सेमीफाइनल के रूप में मिल गया है । दरअसल हर रोज मोदी के समर्थक बनकर आए दिन सोशल मीडिया पर गालियों व अशिष्ट भाषा की नई नई पेटियों को खोलने वाले समर्थक भक्तों को लगता है कि यह उनकी निष्ठा है मोदी या उनकी सरकार में , उन्हें लगता है कि इस भाषा के साथ उनका नेता व सरकार और मजबूत हो रही है तो यह सबसे बड़ी भूल है भक्तजनों की । दरअसल छुटभए समर्थकों की टोली ने बड़ी तादात में वोटरों को अब नाराज कर दिया है जिसका गुस्सा अब धीरे-धीरे चुनावों के नतीजों में भी दिखने लगा है ।
खासकर मोदी समर्थक जिन्हें तथाकथित भक्तों की टोली भी कहा जा रहा है वह वर्तमान में आतंक का पर्याय बन गए है यह कहना गलत नहीं होगा । इनकी गाली गलौच का असर हालिया हुए हिंदी राज्यों में मिले परिणामों में दिख गया है ।
मैंने यह बात अक्टूबर में भी अपनी फेसबुक पोस्ट में लिख दी थी कि मोदी जी को अपने बे-लगाम समर्थक जिनकी निष्ठा भाजपा में कम व अराजकता में ज्यादा है वह इन विधानसभा चुनावों में भी असर डालेगा । और हुआ भी वैसा ही ।
हालांकि मीडिया में भी कभी भी मोदी भक्तों इस भाषा शैली को लेकर कोई चर्चा नहीं होती है पर मुझे व्यक्तिगत रूप से आने वाले समय में वोटरों के गुस्से का यह भी एक बहुत बड़ा कारण महसूस हो रहा है।
भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को एडवाइजरी जारी कर तथाकथित भक्तों को ताक़ीद करना चाहिए कि मोदी को उन्हीं स्वतन्त्र व बौद्धिक वोटरों ने 2014 में मौका दिया जिन्होंने कांग्रेस को 60 वर्षों तक राजपाठ सौंपा । स्वतन्त्र वोटर न भाजपाई है और न ही कांग्रेसी । अफशोष …! लेकिन तथाकथित भक्त स्वतन्त्र वोटरों के स्वतन्त्र विचारों को कुचलने का पूरा काम भी कर रहे हैं । बहुत लोग मोदी के साथ हैं पर भाजपा के नहीं ।
तो क्या भक्तों की अशिष्ट भाषा मोदी के सपनों को 2019 में पूरा करेंगे ? सोचिये जरा !
और हाँ मेरी टिप्पणी को तटस्थ पत्रकारिता की नजर से देखें । इस दौरान मोदी समर्थकों की सोशल मीडिया पर व्यक्त होने वाली टिप्पणी निरंतर मर्यादाओं को लांघ रही है । मेरी पोस्ट का मात्र मंतव्य यह है कि हम सहमति असहमति के लिए अपनी शालीनताओं को न छोड़ें ।
साथ ही कईयों के प्रश्नों का उत्तर मेरी पूर्व की पोस्टों में मिल जाएगा जिसमें मैंने सही पर प्रशंसा और गलत पर आलोचना भी की है । आप और हम किसी व्यक्ति या विचारधारा से भावनात्मक रूप से जुड़ सकते हैं किंतु टिप्पणी करते समय हमें शालीनता और मर्यादा का ध्यान अवश्य रखना चाहिए ।
इसलिए तथाकथित भक्तजनों आप बेशक अपने मन पसन्द नेता का समर्थन करो उनकी अच्छाइयों को सामने लाओ उनके कामों को गिनाओ । 60 साल और 4 वर्षों का आंकलन करो स्वस्थ चर्चा करो भाषाई मर्यादा में रहो तो परिणाम भी अच्छे आएंगे । ये मत भूलना कि यही विधंसात्मक भाषा शैली धीरे-धीरे आतंकवाद या उपद्रवी मानसिकता को जन्म देती है । सत्ता आती जाती रहेंगी पर संस्कार जीवन में बार – बार आने जाने वाली चीज नहीं है । अच्छे इंसान बनो सभ्य और शालीन नागरिक बनो वह भी देश की महान उपलब्धि होगी ।
मुझे पूरा विश्वास है और आप समस्त पाठकजन भी यकीन मानिए कि मेरी इस पोस्ट के बाद कई ठेकेदार आपको कमेंट बॉक्स में टिप्पणी करते हुए दिखाई देंगे ।
शशि भूषण मैठाणी पारस
स्वतन्त्र विचारक
हर वर्ग दुखी है अगर जल्दी सही कदम नहीं उठए तो हार का सामना करना पड़ सकता है
बहुत ही बेहतरीन लेख है एकदम सच्चाई को उजागर करता हुआ, पर इसमें एक चीज़ की कमी अखर रही है अगर इसमें उन तथ्यों को भी ले लिया जाता कि आजकल जो लोग नेता बने बैठे हैं, वो खुद से कोई काम नहीं कर रहें हैं ऊपर से तो पार्टी और भक्ति की बातें कर रहें हैं और मोदी जी के नाम को भुनाने की कोशिश कर रहें हैं परंतु अंदर से खुद ही व्यापक भ्र्ष्टाचार में लिप्त हैं जैसे हाथी के दांत खाने के और दिखाने के और इसीलिए पार्टी पर व्यक्तिगत छवि भी हावी रहेगी आगामी चुनावों में फिर चाहे वो लोक सभा के हों अथवा राज्य सभा के ।
Nice article as always
चल भे चूतिये तुझे भक्त लोगों की गालियां दिखाई देती हैं उनकी नही दिखाई देती जो प्रधानमंत्री को चोर बोल रहे हैं ।भाषा की मर्यादा दोनों तरफ से होनी चाहिए लेकिन जो तू बोल रहा है ना 2019 में जरूर उसका उत्तर मिलेगा । एक ईमानदार इंसान को चोर बोलना क्या होता है ये कांग्रेसी चमचों को और तेरे जैसे गुलाम मानसिकता के लोगों को 2019 में पता चलेगा।।
यही बात अब देख लीजिए समस्त पाठक जन ये हैं DS Bhandari इनकी भाषा शैली को समझिये । अब बताइये ये लोग हैं मोदी जी के भक्त अब शायद मुझे ज्यादा समझाने की जरूरत नहीं है । धन्यबाद भंडारी जी मेरी लिखी हुई बातों को पुष्ट करने के लिए ।
और हाँ मैं इस न्यूज पोर्टल का एडमिन व एडिटर भी हूँ मैं चाहता तो भंडारी जी की इस अशोभनीय भाषा वाली टिप्पणी को Approved ही नहीं करता लेकिन मुझे अपने इस आर्टिकल को प्रमाणित करने के लिए भण्डारी जैसे तथाकथित मोदी भक्तों को आपके सामने ओपन करना भी जरूरी थी ।
बन्दर के हाथ मे उस्तरा फागों तो गाल ही काटेगा,
हमारा समाज अभी तक सोसल मीडिय, इंटरनेट का जिम्मेदारी से उपयोग करने लायक परिपक्व नही हुआ, ऊपर से bjp की प्रोपगेंडा मार्केटिंग रणनीति से भरतीय सामाजिक वातावरण और ज्यादा दूषित हुवा, अब आनियंत्रित ओर अमर्यादित प्रचार प्रसार का खामियाजा भी तो उसी को भुगतना पड़ेगा।
भारत की 70 फीसदी आबादी जो अपना ATM पिन की भी सुरक्षा सही ढंग से नही कर सकती, वो फेक न्यूज़ ओर मनगढ़ंत कहानियों का फर्क कैसे महसूस कर पाती, अतः इन्ही फेक न्यूज़ ओर मनगढ़ंत कहानियों ने नकारात्मक वातावरण तैयार किया, यंहा यह भी समझना होगा कि इन मनगढ़ंत कहानियों ओर फेक न्यूज़ के ज्यादार जनक इसी पार्टी के IT सेल वाले है।