केदार नाथवर्ष 2013 की आपदा में तब जगह-जगह फंसे लोगों को कई दिनों तक करना पड़ा था इंतजार । यात्रियों की आपदाग्रस्त क्षेत्रों से सुरक्षित वापसी भी मौसम पर ही निर्भर था ।
Youth icon Yi National Creative Media Report
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Environment : हिमालय के परिस्थिकीय तंत्र को चाहिए संवर्धन और वैज्ञानिक प्रबंधन…! 

Prof.Anil Kumar Gupta
Prof.Anil Kumar Gupta
Director, Wadiya Institute of Himalayan Geology, Dehradun

16-17 जून को हिमालय की उच्च पर्वत श्रृखलाओं से निकले जल प्रलय ने गंगा नदी के सम्पूर्ण जल संग्रहण क्षेत्र में भंयकर तबाही मचाकर यह सिद्ध कर दिया था कि मानवीय प्रबन्धन प्रकृति के सामने असहाय है । तथा यह भी जता दिया कि हिमालय के हिम आच्छादित क्षेत्रों में विशम व दुरूह भौगोलिक परिस्थतियों के कारण आपदा राहत बचाव कार्य अन्य क्षेत्रों से एकदम भिन्न है ।

केदार नाथ
केदार नाथ 2013 

हिमालय के इतिहास में इस अनूठी त्रासदी में विपुल जन धन सम्पदा व संसाधनों की भारी हानि हुई । वस्तुतः हिमालय विश्व की नवीनतम पर्वत श्रंखला होने के कारण आज भी भूगर्भीय निर्माण की प्रक्रिया से गुजर रही है फलस्वरूप संम्पूर्ण परिस्थतिकीय तंत्र ही प्राकृतिक रूप से गतिमान है । वैश्विक जलवायु परिवर्तन के कारण उच्च शिखरीय क्षेत्रों में अब हिमपात की जगह वर्षा होने लगी है

बदरीनाथ मे नीलकंठ पर्वत का ग्लेशियर ।
बदरीनाथ मे नीलकंठ पर्वत का ग्लेशियर ।

जब कि इस क्षेत्र की भू-आकृतिक संरचना केवल हिमपात के अनुकूल निर्मित है । वर्षा की बूंदो से भू-क्षरण व हिमस्खलन की प्रवल संभावना बन जाती है । पश्चिमी विक्षोप व भारतीय मानसून के असामयिक व अपारम्परिक मिलन से उत्पन्न अतिवृष्टि ढलानो पर मौजूद लगभग 2 फुट मोटी बर्फ की चादर चैराबारी व कैम्पेनियन हिमनद के बोल्डर कंकड-पत्थर रेत आदि मलवे के ढेर चौराबारी ताल टूटने व उच्च शिखरीय क्षेत्रों की भुर-भुरी मिट्टी जैसे कारकों के संयुक्तीकरण से उत्पन्न इस त्रासदी ने वैज्ञानिकों योजनाकारों व विकास प्रबंधकों को नये सिरे से सोचने को मजबूर कर दिया और यह सिद्कर दिया कि हिमालय में आपदा प्रबन्धन में बहुत कुछ करने की आवश्यकता है । जिसका आधार विशुद्ध वैज्ञानिक  व धरातलीय होना चाहिये। कोई भी परिस्थतिकीय तंत्र

उच्च हिमालयी क्षेत्र में ट्रैकिंग के लिए जाते पर्यटक ।
उच्च हिमालयी क्षेत्र में ट्रैकिंग के लिए जाते पर्यटक ।

जैविक व अजैविक कारकों जैसे पेड़-पौघे पशु-पक्षी चट्टान मिट्टी जल बर्फ हिमानी व वातारण आदि द्वारा निर्मित होता है । जब भी कोई कारक समय व स्थिति के सापेक्ष तंत्र की धारक क्षमता से अधिक होता है संम्पूर्ण तंत्र अंसन्तुतिल होकर भयावाह स्थिति उत्पन्न करता है एवं अतुलनीय मानवीय क्षति के कारण इसको त्रासदी या प्रलय का नाम दिया जाता है।

केदारनाथ घाटी में भी वर्षाजल से उत्पन्न तब आपदा ने अपने विध्वंषकारी सहकारकों को अपने साथ मिलाकर भंयकर त्रासदी को जन्म दिया था । आपदा की विभीशिका का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि इसमें लगभग 3000 से अधिक लोगों ने जान गंवाई व सिविल-रक्षा सेवा के 14100 वचाव कर्मियों द्वारा 160000 से अधिक व्यक्तियों को सुरक्षित बचा लिया गया था (NDMA) के आंकड़ों  के अनुसार ।

यद्यपि प्राकृतिक आपदाओं का दुष्प्रभाव पूर्ण रूप से समाप्त नही किया जा सकता । किन्तु इनके पूर्वा अनुमान व वैज्ञानिक प्रबन्धन द्वारा होने वाले नुकसान को न्यूनतम किया जा सकता है । केदारनाथ ही नही सम्पूर्ण हिमालय विशेषकर धार्मिक महत्व के भीड़-भाड़ वाले स्थानों के प्रबन्धन हेतु समसामयिक वैज्ञानिक प्रबन्धन प्रणाली का निर्माण आवश्यक है । जिसमें निम्नवत उपायों का समावेश होना चाहिये।

केदार नाथ
केदार नाथ त्रासदी 2013 

1.    उच्च शिखरीय क्षेत्रों में मौसम की जानकारी व पूर्वानुमान हेतु स्वचालित यंत्रों जसे L॰W॰S॰ व डापलर रडार का सधन तंत्र लगें व उनकी नियमित जानकारी स्थानीय प्रबन्धन तत्रों प्रदान की जाय।

2.    केदारनाथ कस्बे का पुनिर्माण भू-आकृतिक भूगर्भीय अध्ययन के पश्चात स्थानीय कारकों जैसे हिमस्खलन ग्लेषियल डेबरिस फ्लो व भू कटाव आदि को ध्यान में रखकर भूकम्परोधी प्रणाली से हो।

3.    निर्माण के दौरान सिविल इंजीनिरिंग के साथ वायो-इजीनियरिंग तकनीकी का भी यथासम्भव उपयोग हो जिसे पर्यावरण सम्मत समेकित व सतत विकास किया जा सके।

Kedar Nath Disaster
Kedar Nath

4.    सम्पूर्ण परिस्थितिकीय तंत्र के साथ-साथ ग्लेशियर झीलों आदि उच्च शिखरीय कारकों का अलग से अध्ययन हो तथा पुराने नये व सम्भावित भूस्खलन वाले क्षेत्रों का चिन्हीकरण हो ।

5.    सामजिक-आर्थिक विकास हेतु निर्माण कार्य घाटियों में होने के वजाय उंचाई वाले स्थानो पर हों तथा निर्माण से उत्पन्न मलवे को नदियों में प्रवाहित करने के बजाय कट एंड फिल तकनीकी व वायो-इंजीनियरिंग पद्धति द्वारा वैज्ञानिक ढंग से निष्पादित किया जाय ।

6.    उच्च शिखरीय एवं परिस्थतिकी दृष्टिकोण से संवेदनशील क्षेत्रों में सड़क/रास्ता निर्माण के स्थान पर रज्जू मार्ग(हवाई ट्राली) द्वारा घाटियों का आपस में जोड़कर स्थानीय आवागमन सुविधा व पर्यटन विकास किया जाय ।

 Youth icon Yi National Creative Media Report 28.04.2016

By Editor

One thought on “Environment : हिमालय के परिस्थिकीय तंत्र को चाहिए संवर्धन और वैज्ञानिक प्रबंधन”
  1. Very precocious article, the suggestion given must be brooded over by the the concerned authorities.

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