Generation gap : पीढ़ी का अन्तराल, कुछ खट्टा कुछ मीठा !
पीढ़ी के बीच का यह अन्तराल जहाँ नई पीढ़ी को और समझदार एवं खुले बिचार उपहार स्वरुप दे देता है, वहीं सपनो की नई दुनियां रचने का झूठा वादा देकर ये पुरानी दुनियां की हकीकतों को लूटकर चला जाता है। पुरानी पीढ़ी के पास अपने परिवार के लिए पूरा समय हुआ करता था। जैसे हर रोज वो हमें हाथ पकड़कर लिखवाया करते थे , जैसे हर इतवार को खिली धुप में छत पर बैठकर वो हमारे नाखून काटा करते थे, जैसे घर में सब लोग मिलकर कोई खेल खेलते थे, तब हर शाम उनके साथ घूमना कितना अच्छा लगता था, रिश्तेदारों की शादी में जब पूरा परिवार जाता था- तब कितने नए रिश्ते बनते थे, हम कितने खुश होते थे-

हर इंसान जिन्दगी में हजारों सपने देखता है। कई सपने पूरे जरुर हो जाते लेकिन कुछ सपने होतें जो अधूरे ही रह जाते हैं। वजह अलग अलग हो सकती हैं, जो उन सपनो को पूरा होने से रोक देती है। वजह हमारे संसाधन हो सकतें या हमारी किस्मत हो सकती है या फिर हमारा परिवेश भी हो सकता है, जिसकी नज़रों में हमारे सपने मात्र फिजुल हैं। कुछ सपने सिर्फ इस कारण अधूरे रह जाते हैं की हमारे घर-परिवार की नजरों में वो कोई फायदेमंद प्रतीत नहीं होते हैं। असल में घर-परिवार का पीढ़ी अन्तराल इन सपनो की रुकावट का मुख्य वजह बन जाता है। जब किसी इंसान की जिन्दगी में पीढ़ी के
अन्तराल की वजह से कोई सपना अधुरा रह जाता है तो वह एक सपना देखता है- वह निश्चित कर लेता है की मैं अपने होने वाले बच्चों को ऐसी कोई कमी नहीं होने दूंगा जो उनके सपनो को हकीकत बदलने से रोक सके। वह इस पीढ़ी के दर्द जो उसने झेले हैं उन्हें आने वाली पीढ़ी को भेंट नही करना चाहता है।
दो पीढ़ी के बीच का यह अन्तराल जहाँ नई पीढ़ी को और समझदार एवं खुले बिचार उपहार स्वरुप दे देता है, वहीं सपनो की नई दुनियां रचने का झूठा वादा देकर ये पुरानी दुनियां की हकीकतों को लूटकर चला जाता है। पुरानी पीढ़ी के पास अपने परिवार के लिए पूरा समय हुआ करता था। जैसे हर रोज वो हमें हाथ पकड़कर लिखवाया करते थे , जैसे हर इतवार को खिली धुप में छत पर बैठकर वो हमारे नाखून काटा करते थे, जैसे घर में सब लोग मिलकर कोई खेल खेलते थे, तब हर शाम उनके साथ घूमना कितना अच्छा लगता था, रिश्तेदारों की शादी में जब पूरा परिवार जाता था- तब कितने नए रिश्ते बनते थे, हम कितने खुश होते थे- जब माँ हमारे लिए अलग छोटी सी रोटी बनाया करती थी, हम कितने स्वतंत्र थे- जब बिना रोक टोक किसी के भी घर आया जाया करते थे।
पीढ़ी का अन्तराल कुछ देता है तो कुछ छीन भी लेता है। हर पुरानी पीढ़ी के कुछ मजेदार पल उस पीढ़ी के साथ ही खोते चले जाते हैं। उन छोटे- छोटे पलों में बड़ी बड़ी खुशियाँ छुपी होतीं हो जो यादो का पिटारा बनकर रह जाती हैं। शायद नई पीडी के लिए अब मुश्किल होगा की वो अपनी आने वाली पीडी के साथ कुछ ऐसे ही पल बिता सके।
बहुत खूब 👌👌👌👌👌