शशिभूषण मैठाणीशशिभूषण मैठाणी

वहीं उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह का तानाशाह  रवैया तब लोकतन्त्र के अध्याय में एक काला इतिहास जोड़ रहा था ।

शशिभूषण मैठाणी
शशिभूषण मैठाणी

अक्टूबर 1994 को मुजफ्फर नगर और नारसन में हुए भीषण गोलीकाण्ड से लोकतन्त्र के वीभत्स रूप को देख शायद ही उस दिन अहिंसा के पुजारी बापू के मुखड़े पर प्रसन्नता और आँखों में चमक की कोई प्रासंगिकता रही होगी। यकीनन बापू की आत्मा भी उस दिन जार-जार रोई होगी 2 अक्टूबर को घटी घटना ने लोकतन्त्र के चरित्र को शर्मशार कर गर्त में गिरा दिया था और लोकतन्त्र के इस काले अध्याय का खलनायक बना उत्तर प्रदेश का तत्कालीन मुख्यमन्त्री।

पेड न्यूज और घोर व्यवसायिकता के आरोप झेल रहे ;मीडियाद्ध चैथे स्तम्भ का वर्तमान सवालों के घेरे में है। लेकिन उत्तराखंड राज्य के उदय में अगर प्रिंट मीडिया की भूमिका की ईमानदार समीक्षा की जाय तो तसबीर का सुनहरा स्वरूप सामने आता है। नब्बे के दशक में जब पहाड़ों में पृथक राज्य की मांग के स्वर मुखर होने लगे थे तब केंद्र में जमी कांग्रेस की नरसिम्हा राव सरकार से लेकर उत्तर प्रदेश की सत्ता पर काबिज मुलायम सरकार तक सचेत हो गई थी। शुरूआती चिंगारियों को बल पूर्वक दबाने के सरकारी उपाय जब थोपे साबित हुए तो उत्तर प्रदेश की मुलायम सरकार ही मोर्चे पर आ डटी। फिर क्या था ! तब मसूरी श्रीनगर खटीमा देहरादून सहित मुजफ्फर नगर के जघन्य काण्ड पुलिस द्वारा अंजाम दिए गए। स्वतंत्र भारत में अहिंसक आन्दोलन को वीभत्स तरीके से दबाने के ऐसे उदहारण इतिहास में बहुत कम हैं।
केंद्र में तब राव सरकार के अघोषित समर्थन से उत्तर प्रदेश की मुलायम सरकार ने हिमालय की पहाडि़यों पर जो कोहराम बरपाया वह आन्दोलनकारियों के मनोबल को तोड़ने की एक सोची समझी कसरत थी। हो सकता था कि सत्ता की बंदूकें राजधर्म की सारी सीमायें तोड़ डालती लेकिन एन उसी वक्त तमाम अखबार सरकारी तांडव के खिलापत में खड़े हो गए थे। खाशकर अमर उजाला और दैनिक जागरण उन दिनों पर्वतीय ईलाकों में सर्वाधिक पढ़े जाने वाले अखबार थे। ये दोनों अखबार तब मेरठ से प्रकाशित होते थे और उत्तराखण्ड में पहाड़ की आवाज बन कर आम लोगों के दिलों में बस बस गए। इतना ही नहीं समाचार पत्रों ने अपने व्यावसायिक हितों को भी ताक पर रख कर पुलिस के काले कारनामों को मुखरता से ‘कवर’ किया। आज जो राज्य हमारे सामने है उसकी प्राप्ति में लोकतन्त्र के चैथे स्तम्भ का अहम् योगदान रहा है। तब मीडिया के महा कवरेज की परिणिति आज उत्तराखंड राज्य हमारे सामने है। वो बात अलग है कि हमारे नेताओं की महत्वकांक्षाएं इस राज्य का बेड़ा गर्क कर रही है।

Book September Final_Page_05_Image_0004
आज यहां राजनेताओं की कम और मीडिया की सकारात्मक भूमिका पर ध्यान देना ज्यादा जरुरी है। नब्बे के दशBook September Final_Page_05_Image_0005क की वह जनक्रान्ति एक इतिहास लिख गई हैउस वक्त आन्दोलन को व्यापक रूप देने में भी मीडिया की महत्व पूर्ण भूमिका रही है। स्थानीय स्तर पर छपने वाले पत्र-पत्रिकाओं की सहभागिता ने बेशक आन्दोलन को पैनी धार दी हो लेकिन तब त्वरित सन्देश वाहक की जो भूमिका मेरठ से प्रकाशित होने वाले ‘अमर उजाला’ और ‘दैनिक जागरण’ समाचार पत्रों ने निभाई उसी के चलते तत्कालीन मुलायम सरकार ने इनके खिलाफ हल्ला बोल आन्दोलन शुरु करवा दिया था। तब दोनों पत्रों के सरकारी विज्ञापन भी रोक दिए गए थे। और जहां तहां सपाईयों ने इन अखबारों की होली जलानी शुरु कर दी थी। बावजूद समाचार पत्र अपने सरोकारों के सापेक्ष पर्वत वासियों के हक में मुस्तैदी से डटे रहे।
इसलिए आज यह कहने में कोई गुरेज नहीं कि तब लोकतंत्र का चैथा स्तम्भ अपनी सकारात्मक भूमिका के चलते आम जनमानस के सामने अपने शानदार इतिहास के साक्षी लोगों के मानस पटल पर मानो इतिहास उकेर रहा था। वहीं उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह का तानाशाह रवैया तब लोकतंत्र के अध्याय में एक काला इतिहास जोड़ रहा था। हालांकि इस दरमियान कई धारणाएं नेस्तनाबूत भी हो गई थी।
लेकिन उत्तराखंड के मूल सवाल आज भी अपनी जगह कायम हैं। ये बताने की जरुरत नहीं होनी चाहिए कि राजनेताओं और यहां के नौकरशाहों ने वर्तमान में इस राज्य को अपनी एसगाह का अड्डा बना दिया है। दूसरी ओर राज्य बनते ही यहां का मीडिया भी खूब फल फूल गया हजारों पत्र-पत्रिकाएं बाजार की रेश में हैं। इनमे से कुछेक ही अपने पत्रकारिता धर्म को निभा रहे हैं। भले ही आज इस राज्य में ज्यादातर मीडिया से जुड़े संस्थान आम जनता की आवाज कम और नेताओं के उर्जा के स्रोत बनते जा रहे हैं लेकिन बहुत से पत्रकार ऐसे भी हैं जो निष्पक्षता के साथ पत्रकारिता धर्म का पालन कर रहे हैं। वर्तमान में उत्तराखंड राज्य आपदा के जख्मों से कराह रहा है और इस वक्त राज्यवासियों को एक ही चिंता सता रही है कि आपदा के नाम पर राज्य का पुनः निर्माण कहीं भ्रष्टाचार की नींव पर तो नहीं किया जा रहा है ऐसे में अब एक बार फिर राज्यवासियों की अपेक्षा मीडिया से ज्यादा बढ़ गई है जो इस पर चैकस निगाह रख सकती है।

By Editor