Bakari Swayambar : बकरी स्वयम्बर के पीछे का सच! पंडितवाडी नागटिब्बा का अजीबोगरीब फेस्टिवल !

लेखक : मनोज इष्टवाल ।
देहारादून

पहाड़ को पहाड़ की नजर से देखना अलग बात है लेकिन एक अति कहीं भी अच्छी नहीं लगती वो भी ऐसे दिन जब महाशिबरात्री जैसा धार्मिक पर्व हो. जौनपुर की ग्रीन पीपुल किसान विकास समिति का “बकरी स्वयम्बर” हास्य चर्चाओं में ज्यादा और सुर्ख़ियों में कम इसलिए रहा कि आप पंतवाड़ी स्थित “गोअट विलेज” में बकरी स्वयम्बर रच रहे हैं और नाम नागटिब्बा भी सम्मिलित कर रहे हैं.
मैंने आज जाने कितने धर्म पुराण पढ़ दिए यह जानने के लिए कि हिन्दू धर्म के किस पुराण में महाशिबरात्री को बकरियों का स्वयम्बर हुआ था लेकिन निराशा ही हाथ लगी.
हद तो इस बात की है कि ग्रीन पीपुल किसान विकास समिति एक ऐसा विवाह सिर्फ इसलिए महाशिबरात्री पर आयोजित करती है जिसमें लोक समाज की जगह जानवर समाज शामिल होता है और वो भी प्रकृति प्रदत्त नहीं. 15 बकरों को खुली छूट होती है कि वे मात्र तीन बकरियों का वरण करें.
मेरी समझ नहीं आया कि पंडित बुलाये गए मंत्र पढ़े गए ये पंडित क्या सचमुच अब इस काबिल हैं कि किसी मनुष्य की शादी रीति-रस्मों के साथ कर सकें. क्या सरकार सोई हुई है कि महाशिबरात्री पर वह एक एनजीओ को ऐसा करने के लिए रोकती नहीं है. और तो और आप बकरी शादी में नागटिब्बा जैसे पवित्र स्थल का नाम शामिल कर क्या धार्मिक भावनाओं के अनुरूप कार्य कर रहे हैं. आखिर ये बकरी स्वयम्बर रचने के पीछे ग्रीन पीपुल नामक संस्था का सिर्फ ये मकसद तो हो नहीं सकता कि इस से वे बकरी पालन को प्रमोट करेगी. इस आयोजन के लिए परदे के पीछे जो मकसद नजर आता है वह गोअट विलेज के कोटेज हो सकते हैं. जिन्हें बना तो लिया गया है लेकिन वहां तक कैसे पर्यटक पहुंचे उसमें ऐसे फेस्टिवल की ललक बनी रहे.
जन भावनाओं के उलट अगर यह स्वयम्बर महाशिबरात्री की जगह अन्य दिन आयोजित किया जाता तब भी इसका परदे के पीछे का मकसद पूरा हो ही जाता लेकिन महाशिबरात्री पर्व पर बकरी स्वयम्बर रचाकर आखिर ग्रीन पीपुल संस्था क्या जताना चाहती है कि यह शास्त्र सम्मत है! मुझे लगता है मुझ जैसे बहुत से लोक संस्कृति कर्मी इस बात से आहत जरुर हुए होंगे कि ऐसे ऊल-जलूल आयोजन किसी धार्मिक त्यौहार पर आयोजित करने की जगह किसी अन्य दिवस किया जाना चाहिए था. मुझे नहीं लगता कि ग्रीन पीपुल के इस आयोजन से उन तीन बकरियों जिनके नाम कैटरीना, दीपिका और प्रियंका थे को 15 बकरों के मध्य छोड़ देने से कोई नस्ल सुधार हुई होगी. या पांच बकरों के बीच एक बकरी को बाड़े में बंद कर देने से किसी तरह का बकरी पालन व्यवसाय सुधर जाएगा.
फिलहाल दीपिका नामक बकरी का वर बैशाखू, कैटरीना का वर चंदु व प्रियंका का वर टूकून नामक बकरे को मानने वाले पंडित सचमुच बेहद निष्क्रिय और निठल्ले हुए जो चंद पैंसों की हवश में ये भूल ही गए कि किसी भी शास्त्र में किसी भी टीके में बकरी स्वयम्बर सम्बन्धी कोई मंत्र नहीं हैं फिर भी चंद पैंसों की हवश में वे ऐसा अनर्थ कर रहे हैं जो शास्त्र सम्मत कहीं नहीं है.
मुझे नहीं लगता कि मीडिया (प्रत्येक मीडिया हाउस नहीं) मुझ जैसा कडुवा लिख पायेगा क्योंकि आज टीआरपी और पहले मैं पहले मैं ने पत्रकारिता का अध्याय ही काला करके रखा हुआ है. हमें चौथे स्तम्भ की खुद ही वैल्यू पता नहीं है इसलिए कठपुतली बने हुए हैं.
अब ये वो लोग ही जाने जो इस स्वयम्बर में शामिल हुए और इन वर कन्या रुपी पशुओं को आशीर्वाद दे आये कि क्या हिन्दू पुरातन संस्कृति विदेशी फण्ड से पोषित हो रहे ऐसे एनजीओ जिनका काम ही हिन्दू धर्म की बखिया उधेड़ना है इन वर बधू को अपनी पुत्री, पुत्र, जवाई, साला, साली इत्यादि किस नाम से संबोधित करेगा. क्या कोई पशुपालन विभाग का जवाबतलब करेगा कि पशु कल्याण में आज तक सम्पूर्ण हिन्दुस्तान में कितनी शादियाँ वे करवा चुके हैं. या सिर्फ टिहरी के जौनपुरी भोले समाज को टारगेट कर हिन्दुओं की पुरातन संस्कृति का मजाक उड़ाने के लिए विभाग के कुछ भ्रष्ट लोगों को आयोजन कर्ताओं की ओर से फंडिंग हुई है.

साभार : मनोज ईश्ट्वाल

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