youth icon yi mediaनवोदित कवियत्री उपासना सेमवाल ने अपनी पंक्तियों में पहाड़ और मैदान के सामंजस्य की पीड़ा उकेरी तो जुगमिन्दर सभागार (टाउन हाल) में बैठे बुद्धिजीवी व साहित्य कर्मियों के मुंह से एक साथ "वाह" ही नहीं निकला बल्कि जोरदार तालियाँ भी गूंजी! आईये उस कविता का हम भी अवलोकन करें- सि बुना छा हम गढ़वाली बिसर गये बल हम भी अब द्येशी हो गये ।

Idhar-Udhar : वल-तरफ अंग्रेजी टायलेट पल-तरफ़ तौंका द्यबता धर्यां ! 

 

लेखक : मनोज इष्टवाल ।
देहारादून

जब नवोदित कवियत्री उपासना सेमवाल ने अपनी पंक्तियों में पहाड़ और मैदान के सामंजस्य की पीड़ा उकेरी तो जुगमिन्दर सभागार (टाउन हाल) में बैठे बुद्धिजीवी व साहित्य कर्मियों के मुंह से एक साथ “वाह” ही नहीं निकला बल्कि जोरदार तालियाँ भी गूंजी! आईये उस कविता का हम भी अवलोकन करें- सि बुना छा हम गढ़वाली बिसर गये बल हम भी अब द्येशी हो गये ।

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प्रसिद्ध गीतकार, कवि व लेखक मदन मोहन डुकलाण व गिरीश सुन्द्रियाल द्वारा संपादित  “हुंगरा” नामक पुस्तक का विमोचन  लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी ने किया । 

ओधा पोधा पुगंढा तोका ड्येरा मू बांजा धर्या अर योक विश्वा प्लाट का बाना देरादूना छाला पड्या। वलतर बे अंग्रेजी टायलेट पलतर तोंका द्यबता धर्या बुना छा…….. यह मौका प्रसिद्ध गीतकार, कवि व लेखक मदन मोहन डुकलाण व गिरीश सुन्द्रियाल द्वारा संपादित व समय साक्ष्य द्वारा प्रकाशित “हुंगरा” नामक पुस्तक के विमोचन का था जिसका विमोचन लोकगायक व रचनाधर्मी नरेंद्र सिंह नेगी, समाजसेवी कविन्द्र नेगी, साहित्यकार मोहन लाल नेगी, साहित्यकार बीना बेंजवाल, शिक्षाविद्ध सुशील राणा, प्रकाशक रानू बिष्ट, मदन डुकलान व गिरीश सुन्द्रियाल द्वारा किया गया. इस अवसर पर साहित्यकार मोहन लाल नेगी को उनका कालजीवी रचना धर्मिता के लिए सम्मानित किया गया वहीँ दूसरी ओर वरिष्ठ लेखक व कवि चारु चंद चंदोला ने श्री मोहन लाल नेगी के साहित्यिक सफ़र पर प्रकाश डालते हुए उनकी रचना धर्मिता के सफर का खुला चिट्ठा सबके सामने रखा वहीँ कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे लोक गायक नरेंद्र सिंह नेगी के कृतित्व की प्रशंसा करते हुए उन्होंने उन्हें ब्रह्मकमल श्री की उपाधि दी व कहा कि पौड़ी का नामकरण अब इस व्यक्तित्व के नाम से नरेंद्र नगर होना चाहिए ताकि साड़ी देश दुनिया सह्त्रों साल तक ऐसे रचनाकर्मी को याद रखे. हुंगरा नामक यह पुस्तक लगभग 484 पृष्ठ की है जिसमें गढ़वाली साहित्य के 104 साल पूरे होने पर 100

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नवोदित कवियत्री उपासना सेमवाल ने अपनी पंक्तियों में पहाड़ और मैदान के सामंजस्य की पीड़ा उकेरी तो जुगमिन्दर सभागार (टाउन हाल) में बैठे बुद्धिजीवी व साहित्य कर्मियों के मुंह से एक साथ “वाह” ही नहीं निकला बल्कि जोरदार तालियाँ भी गूंजी! आईये उस कविता का हम भी अवलोकन करें- सि बुना छा हम गढ़वाली बिसर गये बल हम भी अब द्येशी हो गये ।

साहित्यकारों की कथाओं का प्रकाशन किया गया है जो बेहद दुर्लभ कार्य है. वहीँ इस अवसर पर गद्य कथा वाचन “क्वद्या सौकार” (प्रीतम अपछयाण) व काव्य कथा वाचन “हुंगरा कथा गीत (गिरीश सुन्द्रियाल) परम्परा में दो कथाओं का मंच से उद्बोधन भी हुआ. मंचासीन साहित्यकारों, शिक्षाविद्ध व अन्य ने इस अवसर पर अपने अपने तरीके से जहाँ गढ़वाली कथा के सौ बर्षों का इतिहास खंगाला वहीँ श्रीमती बीना बेंजवाल ने जिस प्रकार 100 कथाओं की समीक्षा में अपना उदबोधन किया वह बेहद कर्णप्रिय शैली का था. बीना बेंजवाल जिस तरह हर कहानी के सार का व्याख्यान कर रही थी वह ऐसे लग रहा था माना सीधे दिल में उतरकर उसमे पहाड़ के उन तथ्यों और कथ्यों की बसागत कर रहा हो जो हमारे लोक समाज के सांस्कृतिक आर्थिक और धार्मिक पहलु से जुड़े हैं. सुरेन्द्र पाल की कहानी गोदान की बाछी का वर्णन जब बीना बेंजवाल सुना रही थी तब ऐसा लग रहा था मानों यह सब आँखों आगे दृश्य पटल पर चल रहा हो. इस दौरान शांय काल में कवि गोष्ठी का भी आयोजन किया गया जिसमें लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी, देवेन्द्र प्रसाद जोशी, बीना बेंजवाल, हरीश जुयाल कुटज, पयाश ‘पोखड़ा’, ओम प्रकाश सेमवाल, ओम बधानी, उपासना सेमवाल, धर्मेन्द्र सिंह नेगी, गिरीश सुन्द्रियाल, हेमवती नंदन भट्ट हेमू, गणेश खुगशाल ‘गणि’ व मदन डुकलान ने शिरकत की. पहली बार देहरादून के मंच से कविता पाठ करने वाले उपासना सेमवाल की इस कविता ने खूब वाह वाही लूटी जब उन्होंने पहाड़ पलायन और हमारी जिंदगी के अहम् पहलु का मिश्रण करते हुए कहा-“ वल-तरफ अंग्रेजी टायलेट पल-तरफ़ तौंका द्यबता धर्यां! “ वहीँ कुटज ने अपनी सदाबहार हास्य कविताओं से दर्शकों को लोट-पोट कर दिया. जख्या पर देवेन्द्र प्रसाद जोशी की कविता एक तरफ मुंह का स्वाद बढ़ा रही थी तो वहीँ दूसरी ओर बंजर होते खेत खलिहानों के प्रति गहरी चिंता का प्रतीक थी. बीना बेंजवाल ने अपनी सृजन की वानगी को अपने ही तरीके से रखा वहीँ लोक गायक नरेंद्र सिंह नेगी ने “तनली तान, तनी तून..”फिर राजनीति पर तंज कसते हुए पहाड़ के प्रति सजगता से फिर मुद्दे गरम किये.. वहीँ गणेश खुगशाल गणि ने “बुबा जी” नामक कविता में पिता द्वारा किस तरह पारिवारिक पृष्टभूमि को संभाला जाए पर बेहद मार्मिक कविता सुनाई, गिरीश सुन्द्रियाल ने जहाँ बंसन्त पर अपनी कविता रखी वहीँ हेमवती नंदन भट्ट हेमू ने राज्य निर्माण से संदर्भित कविता पाठ किया. देर रात तक चले इस कार्यक्रम क्र श्रोता अंत तक बैठे रहे. वहीँ हुंगरा नामक यह पुस्तक वास्तव में 100 साल की कथाओं का एक ऐसा कथा संसार है जो बेहद दुर्लभ कहा जा सकता है.

By Editor