Koti Banal Yamuna Ghati : क्या है रहस्य ! उत्तराखण्ड के यमुना घाटी में इन भवनों का ।  कोटी बनाल कैसे दुनियांभर के शोधकर्ताओं के लिए कैसे हुआ महत्वपूर्ण ? भारत में सबसे पहले किस राज्य ने अपनाई उत्तराखण्ड की शैली ?Koti Banal Yamuna Ghati : क्या है रहस्य ! उत्तराखण्ड के यमुना घाटी में इन भवनों का ।  कोटी बनाल कैसे दुनियांभर के शोधकर्ताओं के लिए कैसे हुआ महत्वपूर्ण ? भारत में सबसे पहले किस राज्य ने अपनाई उत्तराखण्ड की शैली ?

Koti Banal Yamuna Ghati : क्या है रहस्य ! उत्तराखण्ड के यमुना घाटी में इन भवनों का ।  कोटी बनाल कैसे दुनियांभर के शोधकर्ताओं के लिए कैसे हुआ महत्वपूर्ण ? भारत में सबसे पहले किस राज्य ने अपनाई उत्तराखण्ड की शैली ?

* दुनिया के लिए रहस्य और रिसर्च बने कोटी बनाल के चैकट । 
* नाॅर्वे के वैज्ञनिकों की टीम पहुंची रिसर्च करने  । 

इस बेहद ही रोचक व सटीक तथ्यात्मक रिपोर्ट को प्रस्तुत कर रहे हैं प्रदीप रावत

The trek begins from a place called Munsiyari located in Pithoragarh district. From here you have to trek 25 km to reach a place called Bagudyar via Lilam. From Bagudyar to Rialkot and from Rialkot to Martoli is another 17 km of trekking though breathtaking Himalayan environs. From Martoli, a further trek of 17 km will take you to Milam village via Burfu. From here, the glacier is a 5 Km trek. Namik glacier trek is situated in Kumaon Himalayas at an attitude of 3,600 mtrs. It is 40 km from Munsiyari and situated at the villages of Gogina and Namik. The glacier is surrounded by peaks like Nanda Devi (7,848 m) -Goddess of Bliss, Nanda Kot (6,861 m), and Trishul (7,120 m).The glacier falls on ancient Indo-Tibet trade route. There are a number of waterfalls and Natural sulphur springs originating around this glacier. The glacier can be reached by trekking from Bala village on Thal - Munsiyari road near Birthi Fall. It is 129 km from Pithoragarh. The word 'Namik' means a place where saline water springs are present. Namik is a fascinating glacier cradled in the pristine environs of Kumaon Himalayas, within the district of Pithoragarh in the hill state of Uttarakhand in India.
प्रदीप रावत

कुदरत ने इस राज्य को अकूत प्राकृतिक सुंदरता प्रदान की है। अध्यात्म के नजरिए से देखें तब भी हम देश के दूसरे राज्यों से मीलों आगे। चार धाम से लेकर, हरिद्वार, ऋषिकेश, जागेश्वर, बागेश्वर, लाखामंडल और भी न जाने कितने ही ऐसे तीर्थ इस धरती पर हैं, जिनको दुनिया अब तक देख भी नहीं पाई। इन सबके बीच हमारी वास्तुकला, भवन निर्माण शैली, नक्कासी दुनियाभर में मशहूर है। इनमें सबसे चर्चित रहे चैकट (बहुमंजिला भवन निर्माण शैली) इस शैली को न कभी संरक्षित करने का प्रयास किया गया और न बचाने का।

हालत यह है कि लोगों ने पुरानी शैली के इन चैकटों को उखाड़कर कंकरीट के भवन बना लिए। करीब 7 साल पहले भोपाल की एक संस्था ने गांव-गांव जाकर इन मकानों को सस्ते दामों पर खरीदा। उन्होंने कमानों को गिराने के बजाय, जिस तरह यह बने थे, उसी तरह उखाड़कर ले गए और भोपाल में इनको फिर उसी तरह से जोड़ दिया। कुछ के डिजाइन तैयार कर उन्हीें की तरह छोटे प्रतिरुप बनाकर भोपाल के स्टेच्यू म्यूजियम में रखा गया है।यह सब इसलिए कि इन दिनों उत्तराकाशी जिले की रंवाई घाटी में बनाल कोटी के चैकट उत्तराखंड के लिए ना सही, लेकिन नाॅर्वे जैसे देश के वैज्ञानिकों के लिए शोध का विषय बने हुए हैं। नाॅर्वे के NORSAR (नोरसार) रिसर्च आॅर्गनाइजेशन के रिसर्चर डोमिनिक एच.लेंग अपनी पूरी टीम के साथ इन चौकटों पर रिसर्च कर यह जानने की कोशिश कर रहे हैं कि आखिर 6 से 1000 साल तक पुराने यह मकाने आज भी इतनी मजबूती ओर शान से कैसे खड़े हैं। हमें इस बारे में सोचना चाहिए। सरकार पता नहीं कुछ करेगी या नहीं, लेकिन, जिनके पास इस शैली के मकान हैं। उनको जरुर अपनी धरोहर को बचाने के लिए गंभीरता से चिंतन करना चाहिए। खैर रिसर्च इंजीनियर लेंग को थेंक्स।

आईआईटी रुड़की के साथ कर रहे काम

Koti Banal Yamuna Ghati : क्या है रहस्य ! उत्तराखण्ड के यमुना घाटी में इन भवनों का ।  कोटी बनाल कैसे दुनियांभर के शोधकर्ताओं के लिए कैसे हुआ महत्वपूर्ण ? भारत में सबसे पहले किस राज्य ने अपनाई उत्तराखण्ड की शैली ?
Koti Banal Yamuna Ghati : क्या है रहस्य ! उत्तराखण्ड के यमुना घाटी में इन भवनों का ।  कोटी बनाल कैसे दुनियांभर के शोधकर्ताओं के लिए कैसे हुआ महत्वपूर्ण ? भारत में सबसे पहले किस राज्य ने अपनाई उत्तराखण्ड की शैली ?

NORSAR (नोरसार) रिसर्च आॅर्गनाइजेशन के रिसर्चर डोमिनिक एच.लेंग का कहना है कि वह इन मकानों के बारे में जानकर हैरान हैं। उन्होंने सुना और पढ़ा तो था, लेकिन देखा पहली बार। वह इस बात से और हैरान हो गए कि इनकी धुलाई नहीं की जाती। कई सालों से बिना धुले ही इसी तरह चकम रहे हैं। उन्होंने बताया कि वह आईआईटी रुड़की के साथ मिलकर इन भवनों को बनाने की कला को सीखने आए हैं। यह भी जानने का प्रयास कर रहे हैं कि कैसेे इतने सालों से यह खड़े हैं। 1991 में उत्तरकाशी के भयंकर भूकंप भी इनको नहीं हिला पाया था।

पुरातत्व विभाग में नहीं बचे कोई तत्व :

Koti Banal Yamuna Ghati : क्या है रहस्य ! उत्तराखण्ड के यमुना घाटी में इन भवनों का ।  कोटी बनाल कैसे दुनियांभर के शोधकर्ताओं के लिए कैसे हुआ महत्वपूर्ण ? भारत में सबसे पहले किस राज्य ने अपनाई उत्तराखण्ड की शैली ?
Koti Banal Yamuna Ghati :  कोटी बनाल दुनियांभर के शोधकर्ताओं के लिए कैसे हुआ महत्वपूर्ण ? भारत में सबसे पहले किस राज्य ने अपनाई उत्तराखण्ड की शैली ?

आप सोच रहे होंगे कि मैं पुरातत्व विभाग को तत्वहीन कैसे करार दे रहा हूं। उसका वाजिब कारण है मेरे पास। दरअसल, आज से 11 साल पहले और फिर पिछले साल यानि 2016 में पुरातत्व विभाग ने यमुना घाटी की सदियों पुरानी भवन निर्माण शैली कोटी बनाल को फिर से प्रचलित करने का प्रस्ताव बनाया। सरकार ने भी संरक्षण के आदेश दिए, लेकिन क्या हुआ। विभाग के अधिकारियों ने योजना तो बनाई। उस पर अमल नहीं किया। यमुना घाटी में इस शैली से बने चार मंजिला (चैकट) और दूसरे भवनों को पुरातत्व और संस्कृति विभटूरिज्म सेंटर बनाने की भी योजना बनी, लेकिन वह केवल योजना तक ही सीमित रही।

हजारों साल पहले हुई शुरुआत : 

यमुना बेसिन में इस तरह की वास्तु शिल्प से भवन बनाने की शुरुआत हजारों साल पहले हुई थी। रंवाई घाटी में जो भवन बने हैं, वे छह सौ से एक हजार साल पुराने हैं। इस अरसे में प्रदेश के उत्तरकाशी, चमोली आदि हिमालयी क्षेत्रों ने भूकंप के कई बड़े झटके झेले, लेकिन इन भवनों का बाल बांका न हुआ। यमुना बेसिन की इस भवन निर्माण शैली से गंगा बेसिन के रैथल गांव में भी कुछ मकान बने हुए हैं। इस संबंध में आपदा न्यूनीकरण एवं प्रबंधन केंद्र ने भी सर्वे किया था। इसकी रिपोर्ट प्रदेश शासन को दी गई थी। राजगढ़ी के पास धराली गांव में भी इस तरह के कई मकान आज भी हैं। इनमें लोग रहते भी हैं। मां यमुना के शीतकालीन वास खरसाली में शनि मंदिर करीब 30 डिग्री एक ओर झुका हुआ है। इस पर भी कई रिसर्च हो चुके हैं, लेकिन आज तक कोई इसकी वास्तविक स्थिति का पता नहीं लगा पाए।

यह है कोटी बनाल शैली : 

मजबूत प्लेटफार्म पर इस वास्तु शिल्प से भवन लकड़ी और पत्थर के बनाए जाते हैं। लकड़ी के खंभों के बीच पत्थरों को ऐसे तैयार किया जाता है कि प्रेशर कम से कम रहे। भवन में एक दरवाजा रखा जाता है। ये भवन चार-मंजिल तक होते हैं। अमूमन हर मंजिल एक कमरे की होती है। भूकंप से सुरक्षा के अलावा इनकी सबसे ऊपर छत ढलवा होने के कारण बर्फबारी से सुरक्षा रहती है। जहां तक कोटी बनाल के चैकट की बात है। इससे जुड़े कई तथ्य हैं। गोरखा आक्रमण से भी इसका संबंध है।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

By Editor