“मैंने अपनी जिंदगी के 23 साल जेल के भीतर बिताए हैं । मेरे लिए जिंदगी खत्‍म हो चुकी है । जिसे आप देख रहे हैं, वह एक जिंदा लाश है। मैं 20 साल का होने वाला था, जब जेल में डाला गया । अब मैं 43 साल का हूं । आखिरी बार जब मैंने अपनी छोटी बहन को देखा था तब वह 12 साल की थी, अब उसकी 12 साल की एक बेटी है । मेरी भांजी तब सिर्फ एक साल की थी, अब उसकी शादी हो चुकी है । मेरी कजिन मुझसे दो साल छोटी थी, अब वह दादी बन चुकी है । पूरी एक पीढ़ी मेरी जिंदगी से गायब हो चुकी है ।
Youth icon Yi National Creative Media Report
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Nisaruddin : खत्‍म हो चुकी है जिंदंगी, अब  सामने है सिर्फ एक जिंदा लाश…!

*और अख़लाक़ अमर हो गया दोस्तों…..! 

Sagar Pundir . Youth icon Yi Report
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“मैंने अपनी जिंदगी के 23 साल जेल के भीतर बिताए हैं । मेरे लिए जिंदगी खत्‍म हो चुकी है । जिसे आप देख रहे हैं, वह एक जिंदा लाश है। मैं 20 साल का होने वाला था, जब जेल में डाला गया । अब मैं 43 साल का हूं । आखिरी बार जब मैंने अपनी छोटी बहन को देखा था तब वह 12 साल की थी, अब उसकी 12 साल की एक बेटी है । मेरी भांजी तब सिर्फ एक साल की थी, अब उसकी शादी हो चुकी है । मेरी कजिन मुझसे दो साल छोटी थी, अब वह दादी बन चुकी है । पूरी एक पीढ़ी मेरी जिंदगी से गायब हो चुकी है ।
“मैंने अपनी जिंदगी के 23 साल जेल के भीतर बिताए हैं । मेरे लिए जिंदगी खत्‍म हो चुकी है । जिसे आप देख रहे हैं, वह एक जिंदा लाश है। मैं 20 साल का होने वाला था, जब जेल में डाला गया । अब मैं 43 साल का हूं । आखिरी बार जब मैंने अपनी छोटी बहन को देखा था तब वह 12 साल की थी, अब उसकी 12 साल की एक बेटी है । मेरी भांजी तब सिर्फ एक साल की थी, अब उसकी शादी हो चुकी है । मेरी कजिन मुझसे दो साल छोटी थी, अब वह दादी बन चुकी है । पूरी एक पीढ़ी मेरी जिंदगी से गायब हो चुकी है ।

इस देश का हाल तो देखो। अपनी जिंदगी के सुनहरे 23 साल जिसने बेगुनाह होने के बाद भी जेल में बिताये हो, उस निसारउद्दीन अहमद के दर्द को कोई नही बाटना चाहता । आखिर वो भी तो एक मुस्लिम ही है । फिर अख़लाक़ पर इतनी राजनीती और ‪‎live TV शो क्यों ? आखिर क्यों कोई उसके बारे में बात नही करना चाहता । जो बेगुनाह जेल में तो 20 साल की उम्र में गया था मगर लोटा 43 साल की उम्र में । निसारउद्दीन अहमद को बाबरी मस्जिद ढहाए जाने की पहली बरसी पर हुए ट्रेन बम धमाकों के आरोप में उम्रकैद की सजा सुनाई गयी थी । निसार उन तीन लोगों में से एक हैं जिन्‍हें सुप्रीम कोर्ट ने सभी आरोपों से बरी कर दिया था । देश की सबसे बड़ी अदालत ने उन्‍हें सुनाई गई उम्रकैद की सजा को रद्द रद करते हुए 11 मई को तुरंत रिहा करने का आदेश दिया था । निसार ने जेल से लौटने के बाद कहा , “मैंने अपनी जिंदगी के 23 साल जेल के भीतर बिताए हैं । मेरे लिए जिंदगी खत्‍म हो चुकी है । जिसे आप देख रहे हैं, वह एक जिंदा लाश है। मैं 20 साल का होने वाला था, जब जेल में डाला गया । अब मैं 43 साल का हूं । आखिरी बार जब मैंने अपनी छोटी बहन को देखा था तब वह 12 साल की थी, अब उसकी 12 साल की एक बेटी है । मेरी भांजी तब सिर्फ एक साल की थी, अब उसकी शादी हो चुकी है । मेरी कजिन मुझसे दो साल छोटी थी, अब वह दादी बन चुकी है । पूरी एक पीढ़ी मेरी जिंदगी से गायब हो चुकी है ।

पुलिस ने निसार को गुलबर्गा, कर्नाटक स्थित उसके घर से उठाया था । वह तब फार्मेसी सेकेंड ईयर में पढ़ता था। निसार ने कहा, “ मैं कॉलेज जा रहा था । पुलिस की गाड़ी इंतजार कर रही थी । एक व्‍यक्ति ने रिवॉल्‍वर दिखाई और मुझे जबरन भीतर बिठा लिया । कर्नाटक पुलिस को मेरी गिरफ़्तारी के बारे में कोई खबर ही नहीं थी । यह टीम हैदराबाद से आई थी, वे मुझे हैदराबाद ले गए।”

देश की सबसे बड़ी आदालत ने भले ही निसार को 23 साल बाद रिहा कर दिया हो । मगर क्या दुनिया की कोई भी आदालत निसार को उसकी जिन्दगी के वो हसीन 23 साल लौटा सकती है ? क्या लौटा सकती है वो बाप जो न्याय की आस करता-करता मर गया ? क्या लौटा सकती है निसार की जवानी ? क्या लोटा सकती है वो एक पीढ़ी जो निसार ने जेल की काल-कोठरी में बितादी ? न जाने ऐसे कितने ही निसार खाकी के कंधो पर सजे तमगों की झूठी शान में जेल की काल-कोठरी में कैद होंगे ।

* सागर पुण्डीर 

Copyright: Youth icon Yi National Media, 11.06.2016

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