तथाकथित स्टिंग जिसने पत्रकारिता के सिद्धान्तों की , कर दी हत्या । स्टिंग करने वाला पत्रकार अगर इस स्टिंग को अपने चैनल पर प्रसारित करता तो पत्रकारिता पर लोगों का विश्ववास और बढ़ता । लेकिन इसने ऐसा न करके स्टिंग को नेताओं को सौंप दिया । जिसके बाद से पत्रकार ने भी संदेह के घेरे में है ।
Shashi Bhushan Maithani 'Paras' Editor Yi
Shashi Bhushan Maithani ‘Paras’ Editor Yi

* उत्तराखंड में कलंकित हुई पत्रकारिता !

* स्टिंग के बाद उसके खुलासे के तरीकों से सवालों के घेरे में आई पत्रकारिता ।

आज स्टिंग हुआ उसमें कितनी सच्चाई है यह कुछ अभी कहा नहीं जा सकता है । क्योंकि इसमें अब क़ानून भी अपना काम करेगा । अगर यह स्टिंग सच है तो हरीश रावत जैसे दिग्गज माने जाने वाले नेता के लिए बहुत शर्मनाक बात है ।

और सच्चाई यह भी है कि इस देश में पर्दे के पीछे ग्राम प्रधान से लेकर प्रधानमन्त्री स्तर तक के हमारे सभी नेताओं का चरित्र ऐसा ही होता है , यह हर आम और खाश आदमी बखूबी जानता भी है ।

तथाकथित स्टिंग जिसने पत्रकारिता के सिद्धान्तों की , कर दी हत्या । स्टिंग करने वाला पत्रकार अगर इस स्टिंग को अपने चैनल पर प्रसारित करता तो पत्रकारिता पर लोगों का विश्ववास और बढ़ता । लेकिन इसने ऐसा न करके स्टिंग को नेताओं को सौंप दिया । जिसके बाद से पत्रकार ने भी संदेह के घेरे में है ।
तथाकथित स्टिंग जिसने पत्रकारिता के सिद्धान्तों की , कर दी हत्या । स्टिंग करने वाला पत्रकार अगर इस स्टिंग को अपने चैनल पर प्रसारित करता तो पत्रकारिता पर लोगों का विश्ववास
और बढ़ता । लेकिन इसने ऐसा नकरके स्टिंग को नेताओं को सौंप दिया । जिसके बाद से पत्रकार ने भी संदेह के घेरे में है ।

वह बात अलग है कि किसी का दाग बड़ा है तो किसी का छोटा है । इतिहास गवाह है बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बंगारू ,कांग्रेश के अभिषेक मनु सिंधवी के अलावा संसद में पैंसा लेकर सवाल पूछने वाले और एडवांस कमीशन के बदले सांसद निधि की सौदेबाजी करने वाले सांसदों की लंबी फेहरिस्त है ,जिन्हें स्टिंग के मार्फ़त बेनकाब होते जनता ने टीवी पर खूब देखा है । और आज दिग्गज हरीश रावत को भी स्टिंग के कुवें में देख लिया है ।

पक्ष विपक्ष में बैठे नेता सत्ता पाने या गिराने के लिए इस तरह के षड्यंत्र हमेशा से करते हुवे आएं हैं ।

दो नम्बर के धन को एक नम्बर में तब्दील करने से लेकर औद्योगिक लाभ पहुंचाने की सौदेबाजी किसी से छिपी नहीं है ।

लेकिन यह बेहद ही निंदनीय और चिंतनीय विषय है कि कुछ तथाकथित पत्रकार नेताओं के साथ इस सांठ गाँठ में शामिल होकर पत्रकारिता के पेशे की साख को बट्टा लगा रहे हैं ।

आज का स्टिंग पत्रकारों को शर्मिंदा करने वाला है . जिस तथाकथित पत्रकार ने यह स्टिंग किया वह अगर इस स्टिंग को बिना किसी राजनीतिक सडयंत्र के सीधे अपने चैनल पर प्रसारित करता तो इसकी प्रमाणिकता बढ़ती और साथ ही पत्रकारिता पर आमजन का विश्वास भी कायम रहता ।

हो सकता है कि आज के इस स्टिंग में जो बातचीत रिकार्ड हुई है वह 100% सच भी हो , लेकिन जिस तरीके से स्टिंग को चैनल के बजाय नेताओं के हाथ से उजागर करवाया गया है । यह बेहद ही शर्मनाक और दुर्भाग्यपूर्ण घटना है ।

हम पत्रकारों को अपने निजी स्वार्थों की पूर्ती के लिए नेताओं के हाथ की कठपुतली नहीं बनना चाहिए । सरकार बीजेपी की बने , कांग्रेश की बने या फिर किसी और की पत्रकारों को क्या जरूरत है सफेदपोशों के बीच के खेल में डीलिंगमास्टर बनने की और अगर ऐसा ही करना है तो खुलकर राजनीति में जाओ कृपा करके पत्रकारिता के पेशे को बदनाम न करें ।

चिंता इस बात की भी

खतरे में कलम ..!
खतरे में कलम ..!जिस तथाकथित पत्रकार ने यह स्टिंग किया वह अगर इस स्टिंग को बिना किसी राजनीतिक सडयंत्र के सीधे अपने चैनल पर प्रसारित करता तो इसकी प्रमाणिकता बढ़ती और साथ ही पत्रकारिता पर आमजन का विश्वास भी कायम रहता ।

है कि आखिर इस राज्य को दलाली का अड्डा क्यों बना दिया कुछ लोगों ने ।

अपनी बात कहना चाहूँगा कि इस राज्य के लिए अपनी छोटी सी उम्र में अनेक आंदोलन में सहभागिता निभाई थी । इसी क्रम में राज्य आंदोलन के दौरान 10 नवम्बर 1995 को उत्तरकाशी में पुलिसिया बर्बरता का शिकार भी मैं हुआ था जिसके बाद कुछ दिनों का इलाज जिला अस्पताल उत्तरकाशी में हुआ था ।

और ऐसे में अब धनकुबेर पत्रकारों , नेताओं या फिर चाहे वह कोई भी हो सबको सावधान रहने की जरूरत है । कहीं ऐसा न हो कि एक बार फिर से राज्य आंदोलन से जुड़े लोगों की पूरी ताकत संगठित होकर ऐसे लोगों के लिए मुसीबत बन सड़कों पर न उतर जाएं ।

मैं किसी राजनीतिक दल से वास्ता नहीं रखता हूँ । भले ही हम भी अलग-अलग दलों के नेताओं से मिलते हैं बाते करते हैं, चर्चा करते हैं, लेकिन सिर्फ ख़बरों के लिए क्योंकि वही हमारा पेशा भी है, न कि नेताओं के बीच की डीलिंग के लिए ।

आह्वान है उत्तराखंड की उन माताओं बहिनों जिन्होंने इस प्रदेश लिए अपने मांग को उजड़ते देखा है ।

आह्वान है उस माँ का जिसने अपनी गोद सुनी होती देखी है ।

आह्वान उस बहन का जिसने अपने भाई की कलाई को खिसकते देखा है ।

आज आंदोलनकारियों की चुप्पी को कुछ लोगों ने उनकी कमजोरी मान लिया है । जो कि उनकी गलतफहमी है । लेकिन सभी भ्रष्ट नेताओं और दलालनुमा पत्रकारों के लिए सावधान रहने का वक़्त अब बहुत करीब आ रहा है ऐसा मुझे भी लगने लगा है ।

आज हरीश रावत कहते हैं कि उक्त पत्रकार जो खाट पर लेटने वाला एक विशाल साम्राज्य की रचना कर चुका है अकूत संपत्ति का मालिक बन बैठा है, हरीश रावत आगे कहते हैं कि पूर्व मुख्यमंत्रियों को भी इसने दबाव में लिया है । और इस पत्रकार की कोई हैसियत ही नहीं है ।

तो महाराज जब आपको सब पता था तो इतने वर्षों तक चुप्पी क्यों साधे रहे ?

क्यों यह लाडला आपके दरबार का बेरोकटोक दर्जे का दरबारी बना था ?

मुख्यमंत्री जी क्या यह सच नहीं है कि आप जैंसा राजनीतिज्ञ इसके बुलावे पर सीधे चला गया और आप दोनों के उड़न खटोले जौलीग्रांट के एयरपोर्ट पर मिले । सच्चाई तो यह है कि तब तक यह आपकी सरकार बचाने का एक औजार था ।

क्यों आप अपने कद और पद के विपरीत एक अदने प्यादे से मिलने जौलीग्रांट गए ?

क्यों आपने एक पत्रकार के साथ करोड़ों की बात का सिलसिला शुरू कर दिया ?

सीएम साहब अगर इस राज्य में ऐसे लोगों की किसी ने हिम्मत बढ़ाई है तो वह आप लोगों की ही विरादरी है । चाहे वह पूर्व के CM हों या आप या आने वाला कोई भी ।

यह बात भी सच है कि आप राजनीतिज्ञों ने कभी भी सच्चाई और ईमानदारी के साथ पत्रकारिता करने वालों को इज्जत दी ही नहीं ।

चरण वंदन करने वाले चाटुकार टाईप के पत्रकारों को आप लोगों के दरबार में घुसने की खुली छूट रही है । जबकि एक सच्चा खबरची पत्रकार आप नेताओं से राज्य से जुड़े विकास के मुद्दों पर कोई बात करना चाहे तो उसे आप लोगों के द्वारा घंटों इन्तजार कराया जाता है । और ईमानदार पत्रकार सघन तलाशी और लिखा पढ़ी के बाद ही आपके जनता दरबार वाली चौखट को छू पाता है । जबकि आपके “प्रिय” पत्रकार आपके सयन कक्ष तक बेरोकटोक पहुँच जाते हैं या कुछ को आप लोग स्वयं गेट तक लेने पहुँच जाते हैं ।

बुरा न मानिए साहब आज के जो हालात प्रदेश में बन गए इसके लिए आप लोग स्वयं जिम्मेदार हैं ।

मेरा यह संवाद आपसे (हरीश रावत) से निजी तौर पर नहीं है ।

बल्कि मुझ जैंसे गरीब कलम घिस्सू पत्रकार का सत्ता प्रतिष्ठानों और व्यवसाय से संवाद है । मैं आशावादी हूँ , आशा करता हूँ कि देवभूमि की व्यवस्था पटरी पर जरूर आएगी ।

आज घटी इस घटना से भले ही राजनीतिज्ञ खेमे अपने-अपने नफे नुकशान का आंकलन कर रहे हों लेकिन सच तो यह है कि आज पत्रकारिता के सिद्धांतो की भी कहीं न कहीं हत्या हुई है, पत्रकारिता कलंकित हुई है । जिससे मन बहुत व्यथित हुआ है ।

*  शशि भूषण मैठाणी ‘पारस’  , संपादक यूथ आइकॉन

Youth icon Yi Naitonal Creative Media Report

By Editor

3 thoughts on “राजनीतिज्ञों की गुलाम होती पत्रकारिता.. स्टिंग के बाद पत्रकार का आचरण सवालों के घेरे में ..!”
  1. umesh sharma ne jo kuch bhi kiya thik hi kiya waise nahin to ese hi sachhai samne aani chahiye taaki inke chehre benakab ho saken

    1. बेनकाब तो हो गए अब इससे ज्यादा क्या होना है । नेताओं ने अति कर दी है । इनको करोड़ तो चार आना आठ आना की तरह लग रहे हैं ।

  2. Pata nikya jo ra pradesh mein ye center wale bhi kam nahi jin netaon ko uttarakhand ke bare mein kuch nahi pata wo uttarakhand ki baat kar re jaise vijaywargiya aur shyam jaju inhe kya pata uttarakhand ka

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