Cobbler samuroo in gopeshwar chamoli ◆ क्रांति भट्ट, वरिष्ठ पत्रकार । kranti bhatt कौन हैं समुरू ? क्यों पड़ी इन पर नजर ! कैसे बन गए 96 साल के समुरू जीती जागती मिसाल ? किस्मत का रोना रोने वालों के लिए क्यों है मजबूत पाठशाला हैं समुरू ? ये सब बता रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार ◆ क्रांति भट्ट ।Cobbler samuroo in gopeshwar chamoli ◆ क्रांति भट्ट, वरिष्ठ पत्रकार । kranti bhatt कौन हैं समुरू ? क्यों पड़ी इन पर नजर ! कैसे बन गए 96 साल के समुरू जीती जागती मिसाल ? किस्मत का रोना रोने वालों के लिए क्यों है मजबूत पाठशाला हैं समुरू ? ये सब बता रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार ◆ क्रांति भट्ट ।

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कौन हैं समुरू ? क्यों पड़ी इन पर नजर ! कैसे बन गए 96 साल के समुरू जीती जागती मिसाल ? किस्मत का रोना रोने वालों के लिए क्यों है मजबूत पाठशाला हैं समुरू ?
ये सब बता रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार ◆ क्रांति भट्ट ।

* कर्म ही पूजा है.., मंत्र के साधक 96 साल के समुरू !

◆ क्रांति भट्ट, वरिष्ठ पत्रकार । kranti bhatt कौन हैं समुरू ? क्यों पड़ी इन पर नजर ! कैसे बन गए 96 साल के समुरू जीती जागती मिसाल ? किस्मत का रोना रोने वालों के लिए क्यों है मजबूत पाठशाला हैं समुरू ? ये सब बता रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार ◆ क्रांति भट्ट ।
◆ क्रांति भट्ट, वरिष्ठ पत्रकार ।

गोपेश्वर । मेहनत करने की कोई उम्र नहीं होती है और न थकान । जिनका जीवन मंत्र कर्म ही पूजा है । ऐसे लोग सचमुच जीवन में प्रेरक भी होते हैं और इनसे बहुत सीखा भी जा सकता है । ऐसे प्रेरक और कर्म योगी हैं 96 वर्षीय समुरू । जो उम्र के इस पड़ाव में भी थके नहीं है। और जूता सिलकर मेहनत की कमाई खाते हैं। और अपने पोते को भी सिखाते हैं कि मेहनत और काम से बढ़कर कोई नहीं है ।

गोपेश्वर के मुख्य डाकघर के समीप कालेज रोड़ कर नगर पालिका के विश्राम गृह के एक कोने में वर्षों से 96 साल के समुरु जूते सिलकर अपनी और परिवार का जीविकोपार्जन करते हैं। हर सुबह ठीक 8 बजे ये कर्म योगी समुरू अपने ठिया पर आ जाते हैं। और यहां पर काम करना शुरू कर देते हैं। वे मूल रूप से

Cobbler samuroo in gopeshwar chamoli ◆ क्रांति भट्ट, वरिष्ठ पत्रकार । kranti bhatt कौन हैं समुरू ? क्यों पड़ी इन पर नजर ! कैसे बन गए 96 साल के समुरू जीती जागती मिसाल ? किस्मत का रोना रोने वालों के लिए क्यों है मजबूत पाठशाला हैं समुरू ? ये सब बता रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार ◆ क्रांति भट्ट ।

हरिद्वार के रहने वाले हैं। वे बताते हैं गोपेश्वर तब आया जब इतना बड़ा शहर नहीं था ये । कहते हैं कि जीवन में मेहनत का कोई विकल्प नहीं । फालतू एक मिनट भी नहीं रहो ।फालतू रहोगे . तो दुनिया की सुनोगे ।और जरूरी नहीं कि वे बातें सार्थक ही हो ।

एक दिन 100 से 200 रूपये कमा लेते हैं ।कहते हैं कभी कम ही कमाई होती है । पर निराश नहीं होता । बरसात हो या जाड़ा समुरू अपनी छोटी सी ठिया नुमा दुकान पर अआना नहीं भूलते । अब उनके साथ उनका 38 साल का पोता शिव कुमार भी दादा के साथ काम करते हैं। पर वे भी कहते हैं कि जितनी तेजी और बेहतरीन काम दादा करते हैं। हमारे बस की बात नहीं। शिव कुमार के पिता भी कभी कभार गोपेश्वर आकर अपने पिता समुरू जी का काम में हाथ बढाते थे । पर अब नहीं रहे । अब दादा पोता मिलकर काम करते हैं। समुरु कहते हैं मेरे पोते के बेटे हरिद्वार में पढा़ करें ।” मुझे इस बात की खुशी कि मुझे देखते ही कहते हैं बेटा ” ठीक से काम कर रिया कि नी !”

कर्मयोगी समुरू वक्त के संत रैदास से कुछ कम नहीं हैं सामने कठौती । हाथों से जूते ठीक करते हुये हमेशा हंसते हुये और हर वक्त ” राम राम बाबू जी ” कहते दिख सकते हैं। 96 की उम्र में भी आंखों पर चश्मा नहीं है । और ना लाठी पकड़ कर चलते हैं। कहते हैं काम करते हुये उम्र का पता ही चलता ।

By Editor