दुष्ट बीबी का अत्याचार सह न सका वो , और एक दिन सचमुच चला गया वो । हर कोई रोएगा जो रमेश की इस दर्दभरी कहानी को पढ़ेगा । shashi bhushan maithani paras शशि भूषण मैठाणी पारसदुष्ट बीबी का अत्याचार सह न सका वो , और एक दिन सचमुच चला गया वो । हर कोई रोएगा जो रमेश की इस दर्दभरी कहानी को पढ़ेगा । shashi bhushan maithani paras शशि भूषण मैठाणी पारस

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हर कोई रोएगा जो रमेश की इस दर्दभरी कहानी को पढ़ेगा । दुष्ट बीबी का अत्याचार सह न सका वो , और एक दिन सचमुच चला गया वो ।

इस घटना ने साफ कर दिया कि हर स्त्री सीता या नंदा पार्वती की तरह पूज्य नहीं हो सकती हैं । स्त्री रूप में असंख्य ताड़का, सूर्पणखा, हिडम्बा जैसी असंख्य असुरनी (राक्षशियाँ) आज भी कई घरों में मौजूद हैं । 

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शशि भूषण मैठाणी पारस 

बीबी के सताए हुए आदमी का रोम-रोम टूट जाता है । फिर वह थक हार कर जो करता है, समाज उस पर भी ताने मारने लगता है ।

यह कोई काल्पनिक कहानी नहीं है, एकदम सच्ची घटना है । रमेश (काल्पनिक नाम है) जो कि बहुत ही प्रतिभाशाली व्यक्ति था । उसने अपनी मर्जी से अपने पसन्द का घर बसाना चाहा और वह सफल भी हुआ । रागिनी (एक काल्पनिक नाम) जो कि रमेश की पत्नी है ..!

रागिनी की बद-तमीजीयों में कमी होने के बजाय इजाफा होता चला गया । रमेश की छोटी बेटी और बड़ा बेटा जो रमेश के बगैर खाना नहीं खाते या बिना रमेश की झप्पी पाए नहीं सोते थे, एक दिन दुष्ट रागिनी ने उन्हें भी पिता के खिलाफ कर दिया । अब सालों की किच-किच कब वयस्क अवस्था में आ गई रमेश को पता ही नहीं चला । सालों-साल से रमेश एक घर की एक छत के नीचे रहने के बाबजूद एक अलग कोठरीनुमा कमरे में सोता था । कभी गलती से बच्चों के बहाने रमेश दूसरे कमरे में चला भी गया तो पत्नी घर को आसमान में उठा लेती थी, कि मानो रमेश के कमरे में आने से घर में अछूत बीमारी फैल गई हो । वह जोर-जोर से झाड़ू मारने लगती, दरी चटाई फटकती तो कभी बे-वजह बिस्तर उलटने-पलटने लग जाती ! दुष्ट रागिनी का यह संकेत होता था, ताकि रमेश आईंदा अपनी कोठरी के अलावा घर के अन्य कमरों में फिर कभी न आए ।

रागिनी, शादी के तुरंत बाद से ही रमेश के साथ व्यवहारिक रूप से ऐंठने लगी थी । यह क्रम लम्बे समय तक जारी रहा फिर भी रमेश, रागिनी के बदले व्यवहार को नजरअंदाज करता रहा । क्योंकि 5 साल में 2 बेटे और 1 बेटी भी इनके परिवार का हिस्सा बन गए थे ।

दुष्ट बीबी का अत्याचार सह न सका वो , और एक दिन सचमुच चला गया वो । हर कोई रोएगा जो रमेश की इस दर्दभरी कहानी को पढ़ेगा । shashi bhushan maithani paras शशि भूषण मैठाणी पारस
दुष्ट बीबी का अत्याचार सह न सका वो , और एक दिन सचमुच चला गया वो । हर कोई रोएगा जो रमेश की इस दर्दभरी कहानी को पढ़ेगा । 

रमेश की कमाई भी अच्छी खासी थी । वह अपने परिवार से बहुत प्यार करता था । तीन बच्चों की मासूमियत के आगे उसे अपनी बीबी का रूखा और बद-मिजाज व्यवहार झेलने में कोई परेशानी न थी । बीबी घर के कुत्ते को लाड़ तो पति को लात की नोंक पर रखने वाली थी । समाज के सामने बेहद भोली-भाली व संस्कारी बनकर रहती थी । दोगला व्यवहार रागनी का अमिट चरित्र बन गया था ।

धीरे – धीरे बच्चे बड़े होने लगे लेकिन पत्नी रागिनी की बद-तमीजीयों में कमी होने के बजाय इजाफा होता चला गया । रमेश की छोटी बेटी और बड़ा बेटा जो रमेश के बगैर खाना नहीं खाते या बिना रमेश की झप्पी पाए नहीं सोते थे, एक दिन दुष्ट रागिनी ने उन्हें भी पिता के खिलाफ कर दिया ।

अब सालों की किच-किच कब वयस्क अवस्था में आ गई रमेश को पता ही नहीं चला । सालों-साल से रमेश एक घर की एक छत के नीचे रहने के बाबजूद एक अलग कोठरीनुमा कमरे में सोता था । कभी गलती से बच्चों के बहाने रमेश दूसरे कमरे में चला भी गया तो पत्नी घर को आसमान में उठा लेती थी, कि मानो रमेश के कमरे में आने से घर में अछूत बीमारी फैल गई हो । वह जोर-जोर से झाड़ू मारने लगती, दरी चटाई फटकती तो कभी बे-वजह बिस्तर उलटने-पलटने लग जाती ! दुष्ट रागिनी का यह संकेत होता था, ताकि रमेश आईंदा अपनी कोठरी के अलावा घर के अन्य कमरों में फिर कभी न आए । रमेश सब समझता था वह आंखों में आँसू लिए अपने कमरे में चला जाता ।

अब ताज्जुब देखिए कि, रमेश की कमाई से खाने व शान और शौकत करने वाली चटोरी बीबी रागिनी को कभी रमेश की पसन्द या ना-पसंद का भी ख्याल आना तो बहुत दूर की बात वह रमेश को एक कुत्ते की तरह ट्रीट करती थी । जला, कच्चा अध-पक्का, खाना हर रोज उसके सामने फैंक देती थी । यह सब देख रमेश को आदत सी हो गई न उसे ठंडे खाने का मलाल रहा न गरम खाने का शौक़ !

बस ….. वह तो सिर्फ यही इंतजार करता रहा कि कब बच्चे बड़े होंगे और फिर उनसे उसे इज्जत मिलनी शुरू होगी । क्योंकि रमेश ने अपने बच्चों को बहुत अच्छी तालीम दी थी, संस्कार दिए थे ।

लेकिन एक दिन अचानक से बेटे को दुष्ट माँ रागिनी ने उकसा दिया कि देख मौहल्ले के सारे बच्चे बाइक पर घूमते हैं और तेरे पास तो साईकिल भी नही है ।

बच्चे को माँ का कुमंत्र मिला ! बेटे से बोली सुन….. आज शाम को वो तेरा बाप आएगा तो उससे प्यार से मत बोलना जोर से चिल्लाना ! उस पर और ताने मारना ….!

बच्चा पूरी तरह से माँ की पढ़ाई हुई पट्टी को रट गया था । उसे तो अपनी बाइक से मतलब था उसने वही करने की ठानी जो माँ ने उसे बाईक पाने का सस्ता व सरल रास्ता दिखाया था ।

शाम को घर का गेट बजा…!
रागिनी को पता चल गया कि रमेश आ गया, उसने अपने बेटे को रमेश पर चढ़ाई चढ़ने का हुक्म दिया ।
रमेश बेचारा थका हारा अपनी कोठरी में पहुंचा ही था कि, तभी उसका बेटा बिल्कुल माँ से मिली शिक्षा के अनुसार बाप पर सवार हो गया । रमेश को यकीन नहीं हुआ ….!
उसने कहा….. बेटा ! ये कैसे बात कर रहे हो ? मैं पापा हूँ तुम्हारा ।

बेटा बोला पापा .. तुम पापा नहीं पाप हो… खटारा हो ! तब तक बेटी भी आ गई बोली जब तक आप भैया को बाइक नहीं दिलाओगे तब तक मैं भी अब आपके साथ नहीं सोऊंगी ।

दोनों बच्चों को हाथ से निकलते देख रमेश हैरान … परेशान हो गया ! उसने सिर्फ डराने के मकसद से बेटे पर हाथ उठाया ही था कि तब तक 18 साल के हट्टे-कट्टे बेटे ने रमेश का हाथ मरोड़कर कहा पापा अब मैं भी छोटा नहीं रहा समझे ….। मैं इसी कमरे में आपकी धुनाई कर दूंगा ..।

इतना कहकर दोनों बच्चे माँ के पास चले गए दुष्ट माँ ने बच्चों को शाबाशी दी । रमेश के कानों तक दूसरे कमरे से बात आ गई कि यह सब रागिनी का किया धरा है ।

रमेश पूरी रात सोया नहीं । अब उसके हाथ से बीबी के साथ-साथ बच्चे भी निकल गए यह सोच उसने निश्चय किया कि अब उसके रहने का कोई औचित्य नहीं है । लेकिन वह मनुष्य देह का बड़ा सम्मान करता था स्वाभिमानी था । आध्यात्मिक था । मन में उठी उथल-पुथल के बाद उसने तीन दिन में अपना लम्बा सामाजिक जीवन समेट लिया और सब कुछ छोड़ छाड़ चला गया ।

और सबसे बड़ी बात जो बीबी अपने पति को ता-उम्र अपना दुश्मन मानती रही, निठल्ला मानती रही, उस पति ने पूरे जीवनभर की कमाई में कुल जमा 1 करोड़ 7 लाख की जमा पूंजी व जमीन जायदाद भी उसी के नाम कर लिया । और जाते-जाते यह कह गया कि जा रहा हूँ । अब तुम लोगों के बीच नहीं आऊंगा । मुझे माफ़ कर देना ।
फिर रागिनी की तरफ देखकर बोला…… तुम आज 20 साल पहले का वो दिन जरूर याद कर लेना जब हम तुम बड़ी मुश्किल से एक हुए थे । तुम्हे पाने के लिए मैने जी जान एक कर दी थी और तुमने मुझे पाकर खोने मैं अपने कीमती 20 साल लगा लिए ।

खैर…..अब मैं, जा रहा हूँ इस विनती के साथ कि बच्चों को सही राह पर ले आना, अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है ।

रमेश यह सब कहता रहा, लेकिन रागिनी को सब मजाक लगा और उसने तीनों बच्चों को दरवाजे से अंदर किया दरवाजा बंद करते हुए बोली जा… जा … देखती हूँ साला.. कितने दिन बाहर रह सकता है ।

लेकिन अब कई दिनों बाद रमेश की ढूंढ़खोज के बाद भी रमेश का कोई अता पता नहीं है । वह घर से सिर्फ एक चश्मा मात्र लेकर निकला है । अपने सभी कपड़े, पर्स, घड़ी, कागजात व सारी चल अचल संपत्ति बीबी के नाम कर गया । बेटे के नाम बाईक भी बुक करके चला गया । एक-एक साल की स्कूल फीस भी बच्चों की जमा कर गया ।
अब आप समझ सकते हैं कि इतनी बड़ी तैयारी करके एक थका हारा पति कहें या बाप कहाँ जा सकता है ।

लेकिन अफशोष कि रागिनी को अब भी अपने व्यवहार पर लेशमात्र फर्क नहीं पड़ा है ।

अब रमेश कभी नहीं लौटेगा ।

 चाणक्य की नीति में दुष्ट बीबी का वर्णन पढ़ने को मिलता है । दुष्ट बीबी का अत्याचार सह न सका वो , और एक दिन सचमुच चला गया वो । हर कोई रोएगा जो रमेश की इस दर्दभरी कहानी को पढ़ेगा । shashi bhushan maithani paras शशि भूषण मैठाणी पारस
चाणक्य की नीति में दुष्ट बीबी का वर्णन पढ़ने को मिलता है । 

आस पड़ोस के लोगों का तो यह भी कहना है कि रमेश इसलिए चुप रहा क्योंकि रागिनी को वह आपने परिवार वालों की मर्जी के खिलाफ शादी करके घर लाया था । उसे यह झिझक थी कि अगर कभी भी कलह होगा तो उल्टा उसके घर के लोग भी उसी पर तानें मारेंगे । लिहाजा वह रागिनी की एक नही बल्कि दर्जनों ऐसी गलतियों को नजरअंदाज करता रहा जिन बेहूदी हरकतों का यहां वर्णन करना उचित नहीं है । लेकिन समाज में लोगों को इस बात का भी ताज्जुब है कि बेशर्म रागिनी के मायके वालों को सब पता होने बाबजूद भी उन्होंने कभी अपनी बेटी को गलत नहीं ठहराया , शायद यह भी संस्कार ही हैं ।

जब मैं इस घटना को लोगों से सुन रहा था तो मेरे बगल से एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति यह कहते हुए निकला कि , अरे साहब समाज में एक नहीं कई रमेश हैं और वो चुप हैं । रमेश जैसे कई मर्द हैं वो अपने दर्द को सीने में दफन कर चले जाते हैं ।
आखिर मर्द के दर्द को जाने कौन ????

इसके आगे लिखना भी मैने मुनासिब नहीं समझा । 

पर इस घटना ने साफ कर दिया कि हर स्त्री सीता या नंदा पार्वती की तरह पूज्य नहीं हो सकती हैं । स्त्री रूप में असंख्य ताड़का, सूर्पणखा, हिडम्बा जैसी असंख्य असुरनी (राक्षशियाँ) आज भी कई घरों में मौजूद हैं । 

बहरहाल .. रमेश तुम जहाँ भी हो सामने आ जाओ, समाज को तुम जैसे सच्चे व नेक इंसान की सख्त जरूरत है ।

© लेख (स्क्रिप्ट)  : शशि भूषण मैठाणी “पारस”

Shashi Bhushan Maithani Paras

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