
क्या बाज़ार अब नफरत बेचेगा? — एक खतरनाक सामाजिक प्रवृत्ति पर सवाल!
◾ शशि भूषण मैठाणी “पारस”

आज का भारत जब एक ओर विश्वगुरु बनने का सपना देख रहा है, वहीं दूसरी ओर कुछ शक्तियाँ, चाहे वह राजनीति हो, मनोरंजन का संसार हो, या अब व्यापार जगत – समाज को जाति, धर्म, वर्ग और क्षेत्रीय पहचान के नाम पर बाँटने में लगी हैं।
ताज़ा उदाहरण हैं दो टी-शर्ट डिज़ाइन, जो एक प्रतिष्ठित ऑनलाइन बाज़ार Flipkart पर खुलेआम बेचे जा रहे हैं। एक पर लिखा है — “डरते नहीं, डराते हैं… पंडित हम कहलाते हैं”, जबकि दूसरी पर है — “Great चमार” — साथ में शेर और ताज का चिन्ह। इन दोनों डिज़ाइनों के पीछे छुपा संदेश केवल गौरव नहीं, बल्कि वैमनस्य को भी हवा देता है।
क्या यह केवल “आत्मगौरव” है या जानबूझकर समाज के दो वर्गों को आमने-सामने खड़ा करने का एक व्यवस्थित प्रयास?

क्या है कानूनी और नैतिक दृष्टिकोण:
भारत सरकार के अनुसूचित जाति और जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के अनुसार, किसी जाति विशेष के नाम का सार्वजनिक रूप से इस्तेमाल करना, विशेष रूप से ऐसा जो अपमानजनक संदर्भ में आता हो, दंडनीय अपराध है। “चमार” शब्द का उपयोग कई वर्षों से सामाजिक बहिष्कार और अपमान का पर्याय रहा है। सुप्रीम कोर्ट भी इसे offensive caste slur मान चुका है।
वहीं दूसरी ओर, “पंडित” जैसे शब्द को हिंसक प्रतीकों (जैसे तलवार/छुरा) और डराने वाले वाक्यांश के साथ जोड़ना, एक वर्ग विशेष को सामूहिक रूप से आक्रामक और हिंसक घोषित करने का प्रयास है। यह न केवल सामाजिक समरसता को ठेस पहुँचाता है, बल्कि यह भारतीय दंड संहिता की धारा 153A (वर्गों के बीच वैमनस्य फैलाने) के अंतर्गत अपराध की श्रेणी में भी आ सकता है।
क्या यही है व्यापार का असली चेहरा:

सबसे गंभीर चिंता इस बात की है कि यह सारा षड्यंत्र अब “ब्रांडिंग” और “मार्केटिंग” की चकाचौंध में ढक दिया गया है। Flipkart जैसी बहुराष्ट्रीय ई-कॉमर्स कंपनी कैसे ऐसी साम्प्रदायिक/जातिगत भावनाएँ भड़काने वाली वस्तुओं को खुलेआम मंच देती है, यह प्रश्न केवल नैतिकता का नहीं, उत्तरदायित्व का भी है।
यह केवल एक टी-शर्ट नहीं है…
यह एक टी-शर्ट नहीं, एक विचार है। एक वैचारिक बम, जो हमारे युवा वर्ग को गर्व और आक्रोश की मिली-जुली भावना में भड़काकर समाज की जड़ों को खोखला कर रहा है।स
समाज आए आगे और करे बहिष्कार को क्या!
ऐसी वस्तुओं की निंदा और बहिष्कार करना आज हर जागरूक नागरिक का दायित्व है।ऐसे प्रोडक्ट्स को NCW, SC Commission, Cyber Crime Cell जैसे प्लेटफॉर्म्स पर रिपोर्ट किया जाना चाहिए। सच्चाई को सामने लाना ज़रूरी है, पर भावनाओं से नहीं, तथ्यों से ऐसे में मीडिया और सोशल मीडिया का संयमित उपयोग सभी संवेदनशील यूजर को करना चाहिए।
सरकार को चाहिए कि वह Online Marketplace Regulation का स्पष्ट और कड़ा फ्रेमवर्क बनाए वरना भारत में नफरत का अड्डा बन जाएगा ऑनलाइन बाजार।
मेरा उद्देश्य समाज में अपने इस छोटे से लेख के मार्फत सद्भावना बनाए रखने का छोटा सा प्रयास मात्र है। धर्म, जाति, भाषा और क्षेत्र ये हमारी पहचान हैं, पर ये हमारी लड़ाई के कारण नहीं, गौरव के स्रोत होने चाहिए। और अगर बाजार इसे हथियार बना ले, तो समझिए अब केवल राजनीति नहीं, व्यापार भी हमारा दुश्मन बन सकता है।
आओ हम सब मिलकर अपने-अपने हिस्से की रचनात्मक जिम्मेदारियों को निभाते हैं आप भी अपनी-अपनी सोशल मीडिया आई डी, समाचार पत्र या वेबसाइट पर अपनी रचनात्मक भावना से ऐसे सकारात्मक लेख व्यापक सामाजिक चेतना फैलाने के उद्देश्य से लिखें या उचित समझें तो मेरे इस लेख को कॉपी पेस्ट करें अथवा शेयर करें । इसमें लिखे विचार किसी विशेष समुदाय के विरोध में नहीं, बल्कि राष्ट्र में सामाजिक समरसता और राष्ट्रीय एकता के पक्ष में हैं।
(शशि भूषण मैठाणी “पारस”)
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