राजपथ पर सीमांत जनपद चमोली जोशिमथ के ग्रामीण उत्तराखंड का प्रतिनिधित्व करते हुए ।
Youth icon Yi National Creative Media Report
Youth icon Yi National Creative Media Report

Heritage Ramman : कैसे पहुंची गांव से राजपथ तक …? एक कर्मयोगी की यात्रा .

Written By : Ravindra Thapliyay Joshimath
Written By : Ravindra Thapliyay Joshimath

गांव से राजपथ तक ..जी हाँ , यह  कहानी है सीमांत जनपद चमोली के जोशीमठ ब्लॉक के पैनखण्डा स्थित सलुड़-डूंगरा गांव में  ‘रम्माण’ (रामायण) मेले को अंतराष्ट्रीय स्तर पहचान दिलाने वाले कर्मयोगी डॉ  कुशल सिंह भंडारी  की।

राजपथ पर सीमांत जनपद चमोली जोशिमथ के ग्रामीण उत्तराखंड का प्रतिनिधित्व करते हुए ।
राजपथ पर सीमांत जनपद चमोली जोशीमठ  के ग्रामीण उत्तराखंड राज्य का प्रतिनिधित्व करते हुए ।

दरअसल सलुड़-डूंगरा गांव मे प्राचीन काल से ही हर साल बैसाख के महीने ‘रम्माण’ मेला आयोजित होता है जो की रामायण का संक्षिप्त रूप व मुखोटा नृत्य के रूप मे प्रस्तुत किया जाता है।
15 जनवरी 1965 को जन्मे  कुशल सिंह भंडारी के पिता स्वर्गीय पूर्ण सिंह भंडारी व माता श्रीमती राजेश्वरी देवी एक साधारण कृषक परिवार से थे। डॉ भण्डारी  की प्रारम्भिक शिक्षा गांव के ही प्राथमिक विद्यालय से हुई तथा उच्च शिक्षा गोपेश्वर, बीएड रोहतक और पीएचडी श्रीनगर गढ़वाल विश्व विद्यालय से पूरी हुई। पेशे से शिक्षक डॉ भंडारी की प्रथम नियुक्ति 1986 मे रसायन विज्ञान के प्रवक्ता के रूप मे राजकीय इंटर कालेज जोशीमठ मे हुई और वर्तमान मे राजकीय इंटर कालेज सरमोला पोखरी मे प्रधानाचार्य के पद पर अवस्थापित हैं।

 डॉ कुशल सिंह भण्डारी की प्रारम्भिक शिक्षा गांव के ही प्राथमिक विद्यालय से हुई तथा उच्च शिक्षा गोपेश्वर, बीएड रोहतक और पीएचडी श्रीनगर गढ़वाल विश्व विद्यालय से पूरी हुई। पेशे से शिक्षक डॉ भंडारी की प्रथम नियुक्ति 1986 मे रसायन विज्ञान के प्रवक्ता के रूप मे राजकीय इंटर कालेज जोशीमठ मे हुई और वर्तमान मे राजकीय इंटर कालेज सरमोला पोखरी मे प्रधानाचार्य के पद पर अवस्थापित हैं।
डॉ कुशल सिंह भण्डारी की प्रारम्भिक शिक्षा गांव के ही प्राथमिक विद्यालय से हुई तथा उच्च शिक्षा गोपेश्वर, बीएड रोहतक और पीएचडी श्रीनगर गढ़वाल विश्व विद्यालय से पूरी हुई। पेशे से शिक्षक डॉ भंडारी की प्रथम नियुक्ति 1986 मे रसायन विज्ञान के प्रवक्ता के रूप मे राजकीय इंटर कालेज जोशीमठ मे हुई और वर्तमान मे राजकीय इंटर कालेज सरमोला पोखरी मे प्रधानाचार्य के पद पर अवस्थापित हैं।

डॉ भंडारी बताते हैं कि वो बचपन मे अपने दादा-दादी के साथ रम्माण को देखने जाते थे तथा किशोरावस्था से युवाअवस्था तक रम्माण के प्रति रुचि बढ़ती गयी जो आज तक कायम है। धीरे धीरे रम्माण पर भी भौतिकता व आधुनिकता का असर पड़ना शुरू हो गया। जिससे डॉ भंडारी को इसके अस्तित्व की चिंता सताने लगी। अब उनके सामने इसको बचाये रखने और आधुनिकता के साथ सामन्जस्य बनाये रखने की चुनोती थी जिसे दृढ़ निश्चयी भंडारी ने स्वीकार किया, और शुरू हो गयी रम्माण के सवर्धन और प्रचार प्रसार की यात्रा। भंडारी ने सर्वप्रथम रम्माण का महत्व और इसकी उपयोगिता से समन्धित लेख विभिन्न पत्र पत्रिकाओं मे निकलवाने शुरू कर दिए जिससे इस मेले को पहचान मिलनी शुरू हुई। ‘रम्माण’ मेले को प्रचार और प्रसार दिलाने के लिए प्रयासरत भंडारी की इस यात्रा मे एक सुखद मोड़ तब आया जब 2007 मे इंद्रागांधी राष्ट्रीय कला केंद्र INGCA नई दिल्ली द्वारा रामायण पर अंतराष्ट्रीय सेमिनार आयोजित किया गया जिसमे डॉ भण्डारी को भी 15 सदस्यीय दल के साथ प्रतिभाग करने का अवसर प्राप्त हुवा। सेमिनार का विषय था ‘रामायण-अंकन मंचन वाचन’ इस विषय पर भण्डारी  के द्वारा विभिन्न अभिलेख व विवरण प्रस्तुत किये गए और लगभग 4 बार रम्माण की प्रस्तुति स्थानीय कलाकारों के द्वारा की गयी । इस अंतराष्ट्रीय सेमिनार का बहुत ही सुखद परिणाम ये निकला कि 2 अक्टूबर 2009 को यूनेस्को द्वारा रम्माण को विश्व धरोहर घोषित किया गया । ये एक मील का पत्थर साबित हुवा जब इस मेले को विश्व स्तर पर पहिचान मिलनी शुरू हुई । 26 मार्च 2010 को संगीत अकादमी दिल्ली मे भंडारी  के नेतृत्व रम्माण की प्रस्तुति एक अगला कदम था इसके प्रसार का । 2010 मे ही राष्ट्रमण्डल खेल मे भण्डारी  के नेतृत्व मे रम्माण की भब्य प्रस्तुति हुई जिसके गवाह अंतराष्ट्रीय खिलाड़ी भी बने । 2010 मे ही कुम्भ मे स्वर गंगा अभियान के तहत हरिद्वार मे रम्माण की प्रस्तुति हुई । जिससे रम्माण के प्रचार व प्रसार को बल मिला ।

2015 मे सलुड़-डूंगरा गांव मे रम्माण मेले के उद्घाटन समारोह मे डॉ भंडारी  के आग्रह पर मुख्यमंत्री  हरीश रावत के द्वारा गणतन्त्र दिवश के लिए उत्तराखण्ड की झांकी के लिए रम्माण को प्रस्तावित करने की घोषणा की और यहां से प्रारम्भ हुई

ek karykram ke dauran mukhautaa nrity kar
ek karykram ke dauran mukhautaa nrity kar

राजपथ की यात्रा । 26 जनवरी 2016 के गणतन्त्र दिवश की झांकी के लिए उत्तराखण्ड सरकार द्वारा जागेश्वर मन्दिर समूह झुमेलो और रम्माण का प्रस्ताव केंद्र को भेजा गया जिसमे अन्ततः रम्माण को चयनित किया गया । और 26 जनवरी 2016 को चमोली के सलुड़-डूंगरा के रम्माण को दिल्ली के राजपथ पर उत्तराखण्ड की भब्य झांकी के रूप मे पूरी दुनिया ने देखा।
आज कुशल सिंह भण्डारी जी के प्रयासों से सलुड़-डूंगरा मे रम्माण म्यूजियम,रंगशाला और दरबार का निर्माण किया जा चुका है। विभिन्न विद्वान इस विषय पर शोध कर रहे हैं साथ ही नई पीढ़ी के लिए ढोल दमाऊं जागर और नृत्य का प्रशिक्षण दिया जा चुका है ताकि रम्माण रूपी यात्रा अविरल चलती रहे।

2011 मे राज्यपाल द्वारा शैलेश मटियानी पुरुष्कार से सम्मानित भंडारी को पैनखण्डा गौरव सम्मान डीएम चमोली के द्वारा स्मृति चिन्ह प्रशस्ति पत्र पूर्व मुख्यमंत्री निशंक के द्वारा प्रशस्ति पत्र मुख्यमंत्री हरीश रावत द्वारा भी सम्मानित किया जा चुका है । श्री भण्डारी बताते हैं ये सब इतना आसान नही था और न ही मैने कभी इतनी उम्मीद की थी मेरा प्रयास तो बस इसके विकास और संवर्धन मात्र की थी बस ईश्वर का धन्यवाद कि इस यात्रा को ये मुकाम मिला । भविष्य की योजनाओं के बारे मे बेहद ही मृदु भाषी  भंडारी  का कहना है कि रम्माण को विदेशों मे भी प्रदर्शित करने की

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ र्म्मन मुखौटा नृत्य की तीन
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ रम्माण की टीम । 

इच्छा है ताकि वहां के अप्रवासी भारतीय भी अपने जन्मभूमि के बारे मे जान सकें । इस हेतु भावी पीढ़ी को भी प्रशिक्षित किया जा चुका है। भंडारी जी के द्वारा रम्माण पर एक पुस्तक लिखी जा रही है जो बहुत जल्द सबके बीच मे होगी तथा रम्माण मे गाये जाने वाले जागरों की ऑडियो सीडी का भी बहुत जल्दी ही विमोचन होने वाला है जिसको स्थानीय ग्रामीणों ने ही स्वरबद्ध किया है। ये एक कर्मयोगी की कहानी है जिसने सीमांत क्षेत्र के एक गांव सलुड़-डूंगरा मे आयोजित होने वाले रम्माण को गांव से राजपथ तक पहुंचाया और अन्तर्राष्ट्रीय पहिचान दी जिससे न सिर्फ चमोली अपितु पूरे उत्तराखण्ड का गौरव बढा ।   डा0 भंडारी कहते हैं कि सोच भले ही मेरी रही हो पर साथ मुझे लोगों का मिला जिनकी वजह से इस अभियान को आगे बढ़ाने में मुझे कामयाबी हासिल हुई है ।

* रविंद्र थपलियाल 

Copyright: Youth icon Yi National Media, 24.06.2016

यदि आपके पास भी है कोई खास खबर तो, हम तक भिजवाएं । मेल आई. डी. है – shashibhushan.maithani@gmail.com   मोबाइल नंबर – 7060214681 , और आप हमें यूथ आइकॉन के फेसबुक पेज पर भी फॉलो का सकते हैं ।  हमारा फेसबुक पेज लिंक है  –  https://www.facebook.com/YOUTH-ICON-Yi-National-Award-167038483378621/  

By Editor

3 thoughts on “Heritage Ramman : कैसे पहुंची गांव से राजपथ तक …? एक कर्मयोगी की यात्रा .”
  1. बढ़िया अपनी संस्कृति को बचाये रखने के लिए बधाई के पात्रहै कुशल जी

  2. सर आपके कुशल प्रयासों से ही रममाण को इतनी लोकप्रियता हासिल हुई।व विश्व् पटल पर उत्तराखंड ही नहीं भारत को सम्मान एवं एक विशिष्ट पहचान मिली।आप के इस सराहनीय प्रयास के लिए उत्तराखण्ड की जनता आपकी हमेशा ऋणी रहेगी व आपको हमेशा साधुवाद देती रहेगी।जय भारत जय उत्तराखंड।

  3. मैठाणी सर का दिल की गहराइयों से धन्यवाद कि आपने मेरी इस स्टोरी को जगह दी। आज बहुत सारे मित्रों से मिला कुछ लोगों के वाट्सएप पर भी सन्देश आये उनका कहना था हम रम्माण के बारे में जानते थे किन्तु इसके संघर्ष इसके विकास का पता ना था स्टोरी पढ़ कर मालूम हुवा। पुनः श्री मैठाणी जी का आभार।।

Comments are closed.