इस लड़ाई में मालिक तो खूब रूपया कमा रहे हैं साथ में दस्थानीय लोग भी इन पर सट्टा लगाकर चांदी काट रहे हैं। गढ़वाल मंडल के केन्द्र बिन्दु श्रीनगर में तो यह धंधा  खूब फल फूल रहा है। हर शनिवार को यहां गुपचुप तरीके से  इस धंधे का खेल खेला जाता है । जिसमें रुचि रखने वालों की  बड़ी संख्या  है। मैदानों में  तो यह धंधा खूब फलता फूलता रहा है लेकिन अब पहाड़ों पर ऐसा खेल कई युवाओं के भविष्य को चौपट कर देगा . जी हाँ यह सच है क्योंकि इस लड़ाई में मजा भी है और अंधा पैंसा भी । यही कारण है कि कई लोगों को इसकी लत लग चुकी है । जबकि इस तरह कृत्यों पर  अदालत का सख्त एतराज भी  है, लेकिन यहां पहाड़ों में बेधड़क  यह काला धंधा जारी है। इस काली कमाई  में श्रीनगर  के मुर्गा पालक अपने लड़ाकू मुर्गों के साथ पहुचते हैं और दर्शकों की भीड़ के साथ ही सट्टेबाजों का जमावड़ा भी लगता है। जानकार बताते हैं कि यह लड़ाई पहलवानी की तर्ज पर वजन के हिसाब होती है।  इस पूरी लड़ाई में जबरजस्त उत्साह और रोमांच होता है साथ ही काली कमाई भी होती है। एक राउंड की फाइट जितने वाले को फिर से लड़ना पड़ता है। यह मौत का खेल श्रीनगर गढ़वाल में खूब खेला जा रहा है। जिससे मुर्गा मालिकों की खूब कमाई हो रही है। इस लड़ाई में मालिक तो खूब रूपया कमा रहे हैं साथ में दस्थानीय लोग भी इन पर सट्टा लगाकर चांदी काट रहे हैं। गढ़वाल मंडल के केन्द्र बिन्दु श्रीनगर में तो यह धंधा  खूब फल फूल रहा है। हर शनिवार को यहां गुपचुप तरीके से  इस धंधे का खेल खेला जाता है । जिसमें रुचि रखने वालों की  बड़ी संख्या  है। मैदानों में  तो यह धंधा खूब फलता फूलता रहा है लेकिन अब पहाड़ों पर ऐसा खेल कई युवाओं के भविष्य को चौपट कर देगा . जी हाँ यह सच है क्योंकि इस लड़ाई में मजा भी है और अंधा पैंसा भी । यही कारण है कि कई लोगों को इसकी लत लग चुकी है । जबकि इस तरह कृत्यों पर  अदालत का सख्त एतराज भी  है, लेकिन यहां पहाड़ों में बेधड़क  यह काला धंधा जारी है। इस काली कमाई  में श्रीनगर  के मुर्गा पालक अपने लड़ाकू मुर्गों के साथ पहुचते हैं और दर्शकों की भीड़ के साथ ही सट्टेबाजों का जमावड़ा भी लगता है। जानकार बताते हैं कि यह लड़ाई पहलवानी की तर्ज पर वजन के हिसाब होती है।  इस पूरी लड़ाई में जबरजस्त उत्साह और रोमांच होता है साथ ही काली कमाई भी होती है। एक राउंड की फाइट जितने वाले को फिर से लड़ना पड़ता है। यह मौत का खेल श्रीनगर गढ़वाल में खूब खेला जा रहा है। जिससे मुर्गा मालिकों की खूब कमाई हो रही है।

पहाड़ में जबरजस्त उत्साह और रोमांच से काली कमाई की हो रही है लड़ाई ….! Exclusive Report

 

 

 

 इस लड़ाई में मालिक तो खूब रूपया कमा रहे हैं साथ में स्थानीय लोग भी इन पर सट्टा लगाकर चांदी काट रहे हैं। गढ़वाल मंडल के केन्द्र बिन्दु श्रीनगर में तो यह धंधा  खूब फल फूल रहा है। हर शनिवार को यहां गुपचुप तरीके से  इस धंधे का खेल खेला जाता है । जिसमें रुचि रखने वालों की  बड़ी संख्या  है। मैदानों में  तो यह धंधा खूब फलता फूलता रहा है लेकिन अब पहाड़ों पर ऐसा खेल कई युवाओं के भविष्य को चौपट कर देगा . जी हाँ यह सच है क्योंकि इस लड़ाई में मजा भी है और अंधा पैंसा भी । यही कारण है कि कई लोगों को इसकी लत लग चुकी है । जबकि इस तरह कृत्यों पर  अदालत का सख्त एतराज भी  है, लेकिन यहां पहाड़ों में बेधड़क  यह काला धंधा जारी है। इस काली कमाई  में श्रीनगर  के मुर्गा पालक अपने लड़ाकू मुर्गों के साथ पहुचते हैं और दर्शकों की भीड़ के साथ ही सट्टेबाजों का जमावड़ा भी लगता है। जानकार बताते हैं कि यह लड़ाई पहलवानी की तर्ज पर वजन के हिसाब होती है।  इस पूरी लड़ाई में जबरजस्त उत्साह और रोमांच होता है साथ ही काली कमाई भी होती है। एक राउंड की फाइट जितने वाले को फिर से लड़ना पड़ता है। यह मौत का खेल श्रीनगर गढ़वाल में खूब खेला जा रहा है। जिससे मुर्गा मालिकों की खूब कमाई हो रही है।

आगे विस्तार से पढ़ें  युवा पत्रकार कमल पिमोली की इस पूरी रिपार्ट को…

 

कमल पिमोली kamal pimoli shrinagar
कमल पिमोली

खूब फल फूल रहा यह खेल

मैदानों के लोगों के साथ ही पहाड़ों में अब मैदानों के खेल भी खूब चढ़ने लगे हैं। जिन पहाड़ों में कभी बकरियां लड़ाने का प्रचलन हुआ करता था उन्ही पहाड़ों में इन दिनों मुर्गों की लड़ाई का खेल चल रहा है। जो लोगों के लिए कमाई का अच्छा साधन भी बन गया है। जी हां मुर्गों की लड़ाई में मालिक तो खूब रूपया कमा रहे हैं साथ में दर्षक भी मुर्गों पर सट्टा लगाकर चादी काट रहे हैं। गढ़वाल मंडल के केन्द्र बिन्दु श्रीनगर में यह खेल खूब फल फूल रहा है। हर शनिवार को यहां गुपचुप के मुर्गो की लड़ाई आयोजित की जाती है। जिसे देखने के लिए बड़ी संख्या में लोग भी पहुंचते हैं। मैदानों में मुर्गे की लड़ाई पहले मनोरंजन के लिए मेलों में होती थी, नाम कमाने को। लेकिन अब यह लड़ाई कमाई का जरिया बन गयी है। ऊंट की रेस बैलों की लड़ाई आदि पर अदालत ने रोक लगा रखी है, लेकिन यहां बेधड़क मुर्गों की लड़ाई का खेल जारी है। इस लड़ाई में नगर भर के मुर्गा पालक अपने लड़ाकू मुर्गों के साथ पहुचते हैं और दर्शकों की भीड़ के साथ ही सट्टेबाजों का जमावड़ा लगता है। जानकर बताते हैं कि यह लड़ाई पहलवानी की तर्ज पर वजन के हिसाब होती है।

लड़ाई के हैं अपने नियम

 इस लड़ाई में मालिक तो खूब रूपया कमा रहे हैं साथ में दस्थानीय लोग भी इन पर सट्टा लगाकर चांदी काट रहे हैं। गढ़वाल मंडल के केन्द्र बिन्दु श्रीनगर में तो यह धंधा  खूब फल फूल रहा है। हर शनिवार को यहां गुपचुप तरीके से  इस धंधे का खेल खेला जाता है । जिसमें रुचि रखने वालों की  बड़ी संख्या  है। मैदानों में  तो यह धंधा खूब फलता फूलता रहा है लेकिन अब पहाड़ों पर ऐसा खेल कई युवाओं के भविष्य को चौपट कर देगा . जी हाँ यह सच है क्योंकि इस लड़ाई में मजा भी है और अंधा पैंसा भी । यही कारण है कि कई लोगों को इसकी लत लग चुकी है । जबकि इस तरह कृत्यों पर  अदालत का सख्त एतराज भी  है, लेकिन यहां पहाड़ों में बेधड़क  यह काला धंधा जारी है। इस काली कमाई  में श्रीनगर  के मुर्गा पालक अपने लड़ाकू मुर्गों के साथ पहुचते हैं और दर्शकों की भीड़ के साथ ही सट्टेबाजों का जमावड़ा भी लगता है। जानकार बताते हैं कि यह लड़ाई पहलवानी की तर्ज पर वजन के हिसाब होती है।  इस पूरी लड़ाई में जबरजस्त उत्साह और रोमांच होता है साथ ही काली कमाई भी होती है। एक राउंड की फाइट जितने वाले को फिर से लड़ना पड़ता है। यह मौत का खेल श्रीनगर गढ़वाल में खूब खेला जा रहा है। जिससे मुर्गा मालिकों की खूब कमाई हो रही है।
इस लड़ाई में मालिक तो खूब रूपया कमा रहे हैं साथ में स्थानीय लोग भी इन पर सट्टा लगाकर चांदी काट रहे हैं। गढ़वाल मंडल के केन्द्र बिन्दु श्रीनगर में तो यह धंधा  खूब फल फूल रहा है। 

मुर्गों की लड़ाई में तरह तरह के नियम होते हैं। इस लड़ाई में मुर्गे गम्भीर रूप से घायल हो जाते हैं। खून से लथपथ मुर्गे का ब्रेक के बाद इलाज किया जाता है। शक्तिवर्द्धक दवा भी दी जाती है और एक्सरसाइज करवाने के बाद पुनः मैदान में उतारा जाता है।
रोमांच का है यह खेल

इस पूरी लड़ाई में जबरजस्त उत्साह और रोमांच होता है साथ ही काली कमाई भी होती है। एक राउंड की फाइट जितने वाले मुर्गे को फिर से लड़ना पड़ता है। इस लड़ाई में दोनों पक्ष के मुर्गों पर जमकर बोलियां लगती हैं। जीतने वाले मुर्गे पर पैसे लगाने वाले मालामाल होते हैं तो वहीं हारने वाले मुर्गों पर दांव लगाए सट्टेबाजों की जेब खाली हो जाती है।

 

 

 

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