भगवान भरोसे हैं उत्तराखंड मेन सरकारी स्कूलों के बच्चे । आखिर जिम्मेदार है कौन ? फोटो : साभार गूगल से ।

Youth icon yi Media logoUdta Uttrakhand :  आखिर क्यों खाली हो रहे है सरकारी स्कूल …!

Jitendra Joshi, Yi Report Satpuli Pauri
Jitendra Joshi,
Yi Report Satpuli Pauri

सतपुली । 03 Oct.  Yi Media Report , 
सूबे के पहाड़ी क्षेत्रो के सरकारी स्कूलो में दिन प्रतिदिन घटती छात्रो की तदाद के लिए शिक्षा विभाग द्वारा पलायन को जिम्मेदार बताया जाता है पर पलायन के इतर स्कूली व्यवस्थाओ से जुड़े कुछ अन्य ठोस कारण भी है, जो स्कूलो में छात्र संख्या को प्रभावित कर रहे है ।

भगवान भरोसे हैं उत्तराखंड मेन सरकारी स्कूलों के बच्चे । आखिर जिम्मेदार है कौन ?  फोटो : साभार गूगल से ।
भगवान भरोसे हैं उत्तराखंड मेन सरकारी स्कूलों के बच्चे । आखिर जिम्मेदार है कौन ?
फोटो : साभार गूगल नेट से ।

स्थानीय लोगों का मानना है कि सरकारी मास्टरों का स्कूलों से पहले जैसा लगाव नहीं रहा, खुद ही कल्पना कि जा सकती है कि जिन स्कूलों के अध्यापक अगर हर रोज  स्कूल आने व घर जाने के लिए 70 से 100 किलोमीटर का सफर तय करते हों तो वह पढ़ाएंगे कब ? सामाजिक कार्यकर्ता संजय डबराल  कहते हैं कि जब शिक्षक हर रोज 30 से 50 किमी का सफर तय कर स्कूल पहुंच रहे है तो स्कूल की शिक्षा व्यवस्था पर इसका प्रभाव पड़ना भी लाजमी है । विद्यालयो में शिक्षको की कमी व शिक्षकों की लगातार अनुपस्तिथि के कारण भी स्कूलो में छात्र संख्या घट रही है । आखिर क्यों लोग अपने बच्चों का भविष्य ये सब देख बर्बाद करें । सामाजिक कार्यकर्ता डबराल ने कहा कि स्कूलों कि व्यवस्था तब ही पटरी पर आ सकती है जब स्वयं शिक्षक पढ़ाने में रुचि लें व स्कूलों के नजदीक अपने  आवास  की व्यवस्था करेंगे ।

मुख्य शिक्षा अधिकारी पौड़ी ने भी इसे एक बड़ी समस्या माना है । मुख्य शिक्षाधिकारी मदन सिंह रावत  ने कहा कि शिक्षको के विद्यालय में विलंब से आने व अनुपस्थिति पर प्राधानाचार्य को नियमानुसार कार्रवाई करनी चाहिए । शिक्षको स्पष्ट निर्देश हैं कि वह  छात्र हित में विद्यालय के  8 किमी दायरे में ही निवास करे, इसके लिए विभाग द्वारा समय – समय पर आवश्यक दिशा निर्देश भी जारी किए जाते हैं ।

सामाजिक कार्यकर्ता संजय डबराल  कहते हैं कि जब शिक्षक हर रोज 30 से 50 किमी का सफर तय कर स्कूल पहुंच रहे है तो स्कूल की शिक्षा व्यवस्था पर इसका प्रभाव पड़ना भी लाजमी है । विद्यालयो में शिक्षको की कमी व शिक्षकों की लगातार अनुपस्तिथि के कारण भी स्कूलो में छात्र संख्या घट रही है । आखिर क्यों लोग अपने बच्चों का भविष्य ये सब देख बर्बाद करें । सामाजिक कार्यकर्ता डबराल ने कहा कि स्कूलों कि व्यवस्था तब ही पटरी पर आ सकती है जब स्वयं शिक्षक पढ़ाने में रुचि लें व स्कूलों के नजदीक अपने  आवास  की व्यवस्था करेंगे ।
 जब शिक्षक हर रोज 30 से 50 किमी का सफर तय कर स्कूल पहुंच रहे है तो स्कूल की शिक्षा व्यवस्था पर इसका प्रभाव पड़ना भी लाजमी है । विद्यालयो में शिक्षको की कमी व शिक्षकों की लगातार अनुपस्तिथि के कारण भी स्कूलो में छात्र संख्या घट रही है । आखिर क्यों लोग अपने बच्चों का भविष्य ये सब देख बर्बाद करें । सामाजिक कार्यकर्ता डबराल ने कहा कि स्कूलों कि व्यवस्था तब ही पटरी पर आ सकती है जब स्वयं शिक्षक पढ़ाने में रुचि लें व स्कूलों के नजदीक अपने आवास की व्यवस्था करेंगे । *******संजय डबराल सामाजिक कार्यकर्ता । 

मुख्य शिक्षा अधिकारी पौड़ी ने भी इसे एक बड़ी समस्या माना है । मुख्य शिक्षाधिकारी मदन सिंह रावत  ने कहा कि शिक्षको के विद्यालय में विलंब से आने व अनुपस्थिति पर प्राधानाचार्य को नियमानुसार कार्रवाई करनी चाहिए । शिक्षको स्पष्ट निर्देश हैं कि वह  छात्र हित में विद्यालय के  8 किमी दायरे में ही निवास करे, इसके लिए विभाग द्वारा समय – समय पर आवश्यक दिशा निर्देश भी जारी किए जाते हैं ।  बताते चलें कि वर्तमान में पौड़ी जिले के अमूमन  सरकारी स्कूलों में पढ़ाई व्यवस्था चौपट है, मुख्य शिक्षाधिकारी मदन सिंह रावत ने साफ साफ बताया कि विभागीय स्तर पर शिक्षकों को स्पष्ट निर्देश हैं और समय-समय पर निर्देशित भी किया जाता है वह स्कूलों के 8 किलोमीटर क्षेत्र में ही रहेंगे । साफ है कि अब सरकारी शिक्षकों को विभागीय निर्देशों की भी कोई परवाह नहीं है । खासकर एकेश्वर, द्वारीखाल व कल्जीखाल क्षेत्रों के ज्यादातार राजकीय इंटर कालेज व उच्चतर माध्यमिक स्कूल शिक्षको की अरुचि , शिक्षकों के आभाव के अलावा जीर्ण क्षीण स्कूल भवन, व स्कूलों में लगातार शिक्षको की अनुपस्तिथि जैसी समस्याओ से जूझ रहे हैं,  जिसके कारण स्थानीय लोग अब अपने बच्चों  को सरकारी स्कूल में भेजने से कतरा रहे हैं ।

साथ ही एक बड़ी समस्या यह भी है कि अधिकांश स्कूलों में महत्वपूर्ण विषयों पर अध्यापकों के पद खाली पड़े हैं । इसकी सबसे बड़ी वजह यह भी है कि ज़्यादातर सरकारी शिक्षक बाजार या शहरों से सटे स्कूलों को छोड़ना नहीं चाहते हैं ।  हाल ही में  खंड शिक्षा विभाग द्वारा उपलब्ध कराई गई जानकारी के अनुसार संबंधित ब्लाॅको के ज्यादातार स्कूलो में प्रवक्ता व एलटी संवर्ग के 2 से लेकर 5 पद रिक्त पड़े है व कुछ स्कूली भवनो की स्थिति जीर्ण क्षीण भी बनी हुई है ।

Dr.  Jeetendra Joshi, Satpuli ‘Pauri’ 

Copyright: Youth icon Yi National Media,  03.10.2016

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By Editor

9 thoughts on “Udta Uttrakhand : आखिर क्यों खाली हो रहे है सरकारी स्कूल …!”
  1. जितेंद्र जोशी जी,अपने एक बहुत महत्वपूर्ण जानकारी को इस रिपोर्ट के माध्यम से साझा किया है। शिक्षको की उदासीनता एक प्रमुख कारण है,सरकारी स्कूलो मैं दी जाने वाली शिक्षा मैं आई गिरावट का और ऊपर से सरकारी तन्त्र और शिक्षा विभाग की लच्चर व्यवस्था ,सिर्फ नियम बनाने मात्र से इनकी जिमेदारी खत्म नहीँ होती,बल्कि सख्ती से उसका पालन भी करवाये।
    बच्चों को इस चरमराती व्यवस्था से दो चार होना पड़ता है, बहुत शर्म की बात है की आज भी इस गम्भीर समस्या का कोई समाधान नही निकल पा रहा है,और दिन प्रतिदिन ये स्तिथि और भी बदत्तर होती जा रही है।

  2. ये समस्या तो पहले से हीहै समाधान पर् कुछ वैचारिक सुझाव होते तो ज्यादा सार्थक होता आपका आर्टिकल और समाचार जीतेन्द्र जोशी जी
    पर् समस्या कि तरफ आप ध्यान आकर्षित करने में सफल रहे

  3. How it is very easy for teachers to avoid such a major issue.
    This is the main reason for they are not getting respect now a days.
    Feeling very pity for the children’s who are been neglected by the education system.

  4. शिक्षक ही अपने उदेशय से भटक गए है।
    पढ़ाने की आवशयकता तो इनको भी है। समाज को दिशा दिखाने वाले ही दिशाहीन होते जा रहे है।
    जय हो आधुनिक गुरुजनो की।

  5. Really very shameful teachers are highly paid but results Zero.
    Govt schools are just making fool of children’s and spoiling their future.

  6. Nice report sir
    Problem is serious but surprise to see our irresponsible teachers as well as the management taking it in very easy method.

  7. Shiksha ka itna bura haal hai ki srkari school ka naam lete hi ek tshveer samne aati hai jisme shikshak ndarad hai aur bcche bhgwan bhrose.

  8. जितेन्द्र जोशी जी/संजय ड़बराल जी मैं सिर्फ इतना कहना चाहुँगा कि अधिकारी यह कहते हैं कि व्यक्ति(कर्मचारी) को अपने कार्यालय से 08 किलोमीटर के दायरे मे ही रहना चाहिये ,ठीक है, पर क्या वह अधिकारी स्वयं भी 08 किलोमीटर के दायरे मे ही रहते हैं नहीं रहते तो भईया नियम तो सबके लिए एक ही हैं,ऐसे मै एक ही विक्लप है कि सरकार/शासन कर्मचारी को उसके घर के नजदीक ही पोस्टिंग दे ताकि वह अपनी समस्याओं का समाधान भी असानी से कर सके और अपनी ड़यूटी को बखूबी निभा सके तब देखना कभी भी कोई समस्या रहेगी ही नहीं।

  9. We are in a habit of living under mercy. The day we become demanding and behave like one situation will improve. But we have to change the attitude of cheap popularity.
    As long as public will have could not careless and unconcerned attitude result can not be different than what are today.
    We need to change our attitude to expect better things to happen.
    Let us leave aiming at worldly wise achievement and go in for wisely worldly achievements.
    Onkar Negi

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