गोपेश्वर : चमोली जनपद मुख्यालय , उत्तराखण्ड
Youth icon Yi National Creative Media Report
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*उत्तराखंड के नेता अब पहाड़वासियों को खलनायक नजर आने लगे हैं …!

*बोले इससे बढ़िया तो उत्तरप्रदेश मे ही रहते तो अच्छा रहता । 

Shashi Bhushan Maithani Paras , Dehradun YOUTH ICON Yi Report
Shashi Bhushan Maithani Paras ,
Dehradun
YOUTH ICON Yi Report
उत्तराखण्ड पर भारी पड़ रही माननीयों की अति महत्वकांक्षाएं ..... !
उत्तराखण्ड पर भारी पड़ रही माननीयों की अति महत्वकांक्षाएं ….. !

मुझे यह कहने या लिखने में कोई गुरेज नहीं है कि उत्तराखंड के सभी नेताओं चाहे वह किसी भी दल से क्यों न हों सबको शर्म आनी चाहिए । और यह मैं जनभावनाओं को टटोलने के बाद पुख्ता तौर पर लिख रहा हूँ । मैं 14 अप्रैल से हरिद्वार, पौड़ी, रुद्रप्रयाग चमोली व टिहरी जनपदों से 1477 किलोमीटर का सफर तय कर 5 दिन बाद देहरादून लौटा हूँ ।

राज्य में पहली बार राष्ट्रपति शासन लगा है तो सोचा कि क्यों न इस बीच अलग-अलग क्षेत्रों में जनता की नब्ज टटोली जाय और यह जानने की कोशिस करूँ कि उन्हें वर्तमान में नेता विहीन राज्य में कैसा महसूस हो रहा है ?
और मैं भी लेख को अपने शब्दों की जरलरियों से ज्यादा न जड़ते हुए कम शब्दों में लिखूं तो लगभग डेढ़ हजार किलोमीटर के सफर में लगभग सवा सौ लोगों से मेरी बातचीत हुई और मैंने बात भी उस तबके के साथ ज्यादा की जिन्हें नेता हमेशा से अपना वोट बैंक मानते रहे हैं और उन्हे कभी गरीबी से उबरने नहीं दिया । अलग-अलग कस्बों मे हुई बातचीत मे  99.9% लोगों ने यही कहा कि काश यह राष्ट्रपति शासन पूरे 5 साल तक यूं ही लगा रह सकता ।

गोपेश्वर : चमोली जनपद मुख्यालय , उत्तराखण्ड
गोपेश्वर : चमोली जनपद मुख्यालय , उत्तराखण्ड

यह बेहद चौकाने वाली राय आम लोगों के बीच से निकल कर आई है । इसका स्पष्ट संकेत है कि उत्तराखंड के नेताओं ने जनता के बीच अपनी बेहद ही ओछी और निक्कमी पहचान बनाई है । शर्म आनी चाहिए पहाड़ी राज्य के एक-एक छोटे से लेकर बड़े सफेदपोशो को जो आप लोगों ने बीते 16 वर्षों में जनता का विश्वास जीतने के बजाय अपनी महत्वकांक्षाओं को पूरा करने में बिताया है ।

कोटद्वार से पौड़ी आते हुए पाटीसैण कस्बे से कुछ ही दूरी पर एक बुजुर्ग दंपत्ति अपनी 5 बकरियों व दो गायों के साथ सड़क के किनारे – किनारे आगे बढ़ रहे थे , मैंने अपने साथी राकेश बिजल्वाण से गाड़ी रोकने का अनुरोध किया तो वह भी रुक गए,  मैं तुरन्त बुजुर्ग दम्पत्ति तक पहुंचा तो वह सकपका गए उन्हें लगा कि मैं जंगलात विभाग का कोई कर्मचारी या अधिकारी हूँ । मैं कुछ कहता उससे पहले वह दोनों हाथ जोड़ मेरे सामने खड़े हो गए और कहने लगे साहब हम

खूबसूरत पौड़ी गढ़वाल मुख्यालय ।
खूबसूरत पौड़ी गढ़वाल मुख्यालय से लौटते हुए ।

बहुत परेशान हैं हर तरफ आग लगी है …. फिर मैंने उन्हें गढ़वाली में बात करते हुए बताया कि मैं वन विभाग का आदमी नहीं हूँ मैं तो सिर्फ आपसे बात करने के लिए रुका हूँ .. ।

अब मैंने जान-बूझकर उनसे कहा कि क्या, हरीश रावत ठीक काम कर रहे हैं उत्तराखंड में ? तो बुजुर्ग व्यक्ति जिन्होंने अपना नाम सोबन बताया था वह हंसने लगे…. बोडा जी (ताऊ जी) आप हंस क्यों रहे हो ?   अरे साब आप कहां से आए हो ? आपको पता नहीं है क्या कि उत्तराखंड में आजकल राष्ट्रपति शासन लगा हुआ है !

अब मैंने उनके सामने अपना परिचय रखा और बताया कि मैं पत्रकार भी हूँ ।

सोबन जी ने आगे बताया कि आजकल सबकी नेतागिरि बंद हो गई काम हो रहा है या नहीं इसका तो नहीं मालूम पर नेताओं की नेतागिरी न होने से शांति मिली है नहीं तो हर आदमी नेता मंत्री का रिश्तेदार ठेकेदार बनकर घूम रहे रहे थे । उनके बात करते-करते मैंने कहा कि आप दोनों साथ आ जाओ फोटो खींच लेता हूँ तो वह बोले बिल्कुल नहीं .. बिल्कुल नहीं आप मेरी फोटो मत लेना मैंने भी ज्यादा जोर जबरदस्ती नहीं कि लेकिन उनके मन की बात को जानकर आगे बढ़ चला ।

उत्तराखंड के  नेता अब पहाड़वासियों को खलनायक नजर आने लगे हैं । जनता हैरान परेशान है कि 90 के दशक मे जिस भावना के लिए यह राज्य मांगा गया था, अब बिल्कुल उसके उलट यहाँ काम हो रहा है । सभी दलों के नेता जनसमस्याओं के बजाय सरकार बनाने के लिए उतावले रहते हैं । पूर्व मे भी क्षेत्रवासियों ने किसी व्यक्ति को निर्दलीय या एकमात्र क्षेत्रीय दल यूकेडी से भी जिन्हे अपना प्रतिनधि बनाकर विधानसभा तक पहुंचाया तो वह भी बारी-बारी बीजेपी या कांग्रेश के पाले मे जाकर बैठ गए और क्षेत्रिय जनता को मायूस करते रहे । कुल मिलाकर सबका एक ही मकसद है कि सत्ता मे बैठकर कैसे अपने प्रभुत्व को कायम किया जाय ।

आज जनता अपने प्रतिनिधियों से पूछ रही है कि आखिर 16 वर्षों की किन उपलब्धियों के बूते जनता दिल से तुम्हें अपना नुमाइंदा मान ले । हर नेता सत्ता में बने रहने व मलाईदार पद पाने के लिए ही  लालायित रहते हैं । गौचर निवासी डा0 हरदिल कहते हैं कि राज्य की मूल अवधारणा पर बीते 16 वर्षों मे किसी भी नेता ने बात नहीं की है । वर्तमान में राज्य मे जो अस्थिरता बनी है उसमे विकास के बजाय नेताओं मे मुख्यमंत्री या मंत्रि न बनाए जाने व मलाईदार, धन ऊगाऊ विभाग न मिलने के कारण  पनपी नाराजगी है । हरदिल आगे कहते हैं कि कितना दुर्भाग्यपूर्ण है कि भाजपा व कांग्रेश के नेता बार बार अच्छी शराब नीति न होने का हवाला प्रमुखता से गिनाकर सरकार के टूटने का मुख्य कारण बता रहे हैं । लेकिन किसी ने यह नहीं कहा कि देवभूमि मे शराब ही बंद कर दो ।

खंडहर मे तब्दील हो रहे हैं उत्तराखण्ड के गाँव ।
खंडहर मे तब्दील हो रहे हैं उत्तराखण्ड के गाँव ।

अब मै गौचर से आगे बढ़ चला । कार मे बैठे-बैठे घाटी की दूसरी ओर पहाड़ियों पर देख रहा हूँ कि जो गाँव एक दशक पहले तक आबाद हुआ करते थे वह अब तेजी से खंडहरों मे बदल रहे हैं । बीते 16 वर्षों मे पहाड़ से गाँव के गाँव खाली हो गए हैं जिसके कारण पर्वतीय राज्य की सभ्यता, संस्कृति और परम्पराएं भी तहस-नहस हुई हैं । और इस सबके लिए भी जिम्मेदार हैं हमारे नेता । पहाड़ों पर रह गए गिने चुने गाँव के रहवासी वह भी मूलभूत सुविधाओं के अभाव में जी रहे हैं, जो आए दिन भालू, सुवर, तेंदुआ व बंदर जैसे जंगली जानवरों से जीवन जीने की जद्दोजहद मे लगे हैं । वहीं दूसरी ओर सुविधावों की तलाश मे जो लोग गाँव छोड़ शहर गए वे शहरी चकचौंद मे खो से गए हैं । साथ ही वह शहरों मे लूटपाट सहित अन्य वारदातों के शिकार भी हो रहे हैं । कुल मिलाकर उत्तराखंड राज्य पहाड़ वासियों के लिए एक अभिशाप ही बना हुआ है ।

रोजगार के नाम पर राज्य मे अभी तक कोई ठोस नीति नहीं बन पाई जिसके कारण लाखों युवा हतास और निराश हुए रोजगार की आस में आए दिन नेताओं के द्वार पर खड़े देखे जा सकते हैं । रोजगार के नाम पर कभी संविदा, तदर्थ, उपनल और अब अतिथि कर्मचारियों के नाम पर पढे लिखे हुनरमंद युवाओं को मामूली ध्याड़ी पर रखकर उनका भविष्य चौपट किया जा रहा है ।

पहाड़ के साथ-साथ मैदान का अस्तित्व भी खतरे मे आ गया है … !

देहरादून देश और दुनियाँ मे अपने सुंदर आबो-हवा और शांति के लिए जाना जाता था । यहाँ की लींची, बासमती व चावल की मिठास और खूसबू तो देश की सीमाओं के पार तक मशहूर थी, लेकिन बीते 16 वर्षों मे राज्य के नीति नियंता सफेदपोशों ने सब उजाड़ दिया है । शहर की जमीने बड़ी ही चालाकी से भू-माफियाओं के हवाले कर दी गई हैं । आम, लींची व बासमती अब महज किस्से कहानियों मे रह गई है । संभवत: देहरादून हिंदुस्तान का एकलौता ऐसा शहर होगा जो महज एक दशक से भी कम समय मे अपनी पहचान खोकर इतिहास मे तब्दील हो गया । हरा भरा दून अब कंकरीट और सीमेंट के जंगल मे बदल गया है । शहर मे आए दिन लूटपाट, डकैती, हत्या, बलात्कार जैसी वारदातें तो अब आम बात हो गई है । और यही हाल हरिद्वार, ऋषिकेश, हल्द्वानी, रामनगर व काशीपुर जैसे शहरों का भी हो गया है । लेकीन सत्ता हथियाने के लिए सौदेबाजी मे मस्त राज्य के सफेदपोशों ने कभी इस ओर ध्यान देना जरूरी नहीं समझा । उत्तराखंड राज्य की इस दुर्दशा के लिए बीजेपी, कांग्रेश, उत्तराखण्ड क्रांतिदल सहित हर छोटा बड़ा सफेदपोश नेता जिम्मेदार रहा है । जो सिर्फ और सिर्फ माफियाओं से साँठगाठ कर दलाली के धंधों को बढ़ाकर चांदी काट रहे हैं ।

उत्तराखंड के नेताओं को जनता से पहले अपनी ज्यादा चिंता रहती है, तभी तो महज 16 वर्षों मे 8 मुख्यमंत्री इस राज्य पर लद गए और नौवाँ आने को व्याकुल है । यानी कि जितने मुख्यमंत्री 45 वर्षों मे होने थे महज 16 वर्षों मे मिल गए हैं । और मुख्यमंत्रियों की फौज बढ़ाने मे आदर्श और संस्कारों की दुहाई देने वाली पार्टी भारतीय जनता पार्टी पहले स्थान पर है और बीजेपी ने ही यह परंपरा इस राज्य मे डाली है महज दो साल की अन्तरिम सरकार मे नित्यानन्द स्वामी को हटाकर भगत सिंह कोश्यारी को बीजेपी ने सीएम बना दिया था । फिर विधानसभा चुनावों के बाद कांग्रेश सरकार राज्य मे बनी तब की सरकार मे मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी हुए । उस वक़्त कांग्रेश शासन मे हरीश रावत पूरे 5 वर्षों तक तिवारी को अस्थिर करने मे लगे रहे लेकिन उन्हे सफलता नहीं मिली और तब यह सुखद रहा कि कांग्रेश के 5 वर्षीय शासन मे एक ही सीएम राज्यवासियों को मिला था ।

लेकिन फिर 2007 मे जैसे ही बीजेपी का शासन आया तो फिर पहले जनरल भुवन चंद खण्डूड़ी मुख्यमंत्री बनाए गए उनके बाद रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ और फिर भुवन चंद खण्डूड़ी को वापस सीएम की कुर्सी पर बैठा दिया गया । वर्ष 2012 तक के अंक गणित मे कांग्रेश 5 वर्ष के शासन मे महज एक मुख्यमंत्री की ताजपोशी करने मे दूसरे, जबकि बीजेपी 7 वर्ष के शासन मे अनावश्यक रूप से बम्पर 5 मुख्यमंत्री  को लादने मे पहला स्थान पाने वाली पार्टी बनी ।

फिर 2012 के चुनावों के बाद कांग्रेश वापस सत्ता मे लौटी तो आलाकमान द्वारा विजय बहुगुणा को मुख्यमंत्री का ताज पहना दिया गया था, जिससे कांग्रेश के वरिष्ठ नेता और मुख्यमंत्री के प्रबल दावेदार माने जाने वाले हरीश रावत के अरमान एक बार फिर से धराशायी होते दिखे । लेकिन इस बार हरीश रावत भी आर-पार की लड़ाई के मूड मे आ गए थे क्योंकि इस बार उनका सामना एन0 डी0 तिवारी जैसे कद्दावर नेता से नहीं था इसलिए वह आश्वस्त थे कि वह जल्दी कुर्सी को हथिया लेंगे, और हुआ भी वैसे ही केदारनाथ आपदा बहुगुणा पर विपदा बनकर टूटी । तब केंद्र सरकार मे मंत्री हरीश ने मुख्यमंत्री बहुगुणा को खूब नचाए रखा अपनी ही सरकार पर तल्ख टिप्पणियाँ करते रहे । नतीजतन हाईकमान को इस बार रावत के आगे झुकना पड़ा और बहुगुणा के सिर से ताज उठाकर हरीश रावत के सिर पर सजा दिया । और अब उसी विद्रोही परंपरा के शिकार स्वयं हरीश रावत भी बन गए है ।

कमला लाल और बुद्धिलाल से बातचीत ।
कमला लाल और बुद्धिलाल से बातचीत ।

चमोली जनपद के पिपलकोटी पाखी निवासी कमला लाल व बुद्धिलाल कहते हैं कि इस राज से तो उत्तर प्रदेश का ही राज सही था लखनऊ मे क्या हो रहा है कम से कम हमें इस वीभत्स राजनीति का चेहरा तो नहीं दिखता था । आज भाई भाई को मारने को तैयार हो रहा है जब से उत्तराखंड राज्य बना है सब तहस नहस हो गया है ।

जोशीमठ होटल माउण्ट भ्यू मे बतौर मैनेजर हरीश राणा का कहना है कि विकास के नाम पर खूब नेता पैदा हो गए हैं जो पेटीकोट ब्लाउज सिलते थे, जो किताबे बेचते थे, और जो गाडियाँ चलाते थे वह आज हमारे माननीय विधायक मंत्री बनकर घूम रहे हैं । जिनकी सोच हमेशा अठन्नी, चौवन्नी बिन कर रुपया बनाने की रही हो तो वह कैसे राज्य के विकास की सोचेंगे ऐसे लोग तो सबसे पहले अपना ही हित साधेंगे ।

उच्च हिमालयी क्षेत्रों में देशी विदेशी पर्यटकों / पर्वतारोहियों को सैर कराने वाले ट्रेकर संतोष कुँवर कहते हैं कि 16 वर्षों में उत्तराखण्ड के नेता इस प्रदेश की कोई ठोस पर्यटन नीति तक तैयार नहीं कर पाये हैं और नाही इस क्षेत्र मे काम करने वालों के

बदरीनाथ नेशनल हाईवे स्थित पाखी गाँव मे ग्रामीण गैनु लाल भी राज्य बन रहे राजनीतिक हालातों से खुश नहीं हैं ।
बदरीनाथ नेशनल हाईवे स्थित पाखी गाँव मे ग्रामीण गैनु लाल भी राज्य बन रहे राजनीतिक हालातों से खुश नहीं हैं ।

लिए कोई प्रोत्साहन दे पाई है । जो कि नेताओं की अपरिपक्व सोच को दर्शाती है ।

रुद्रप्रयाग के व्यवसाई बलबीर सिंह कहते हैं कि काश यह राष्ट्रपति शासन पूरे 5 वर्षों तक लग पाता जिससे कि कई छुट्भय्ये नेताओं का अंत भी हो जाता और इनकी अक्ल भी ठिकाने लग जाती ।

इसी तरह से कई सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों ने भी कहा कि आजकल कोई भी काम शासन मे रुक नहीं रहा है । जो भी शिकायत जा रही है त्वरित निस्तारण हो रहा है और संबन्धित अधिकारियों से शासन द्वारा जबाब भी लिया जा रहा है, ताकि जनता को किसी भी प्रकार की परेशानी न हो सके । आजकल अनावश्यक नेताओं का दखल न होने के कारण काम बहुत आसानी से हो रहे हैं । और राज्य मे फिजूल खर्ची पर भी रोक लग गई है ।

स्किल डेवलेपमेंट के क्षेत्र मे सक्रिय भूमिका निभाने वाले टिहरी निवासी रमेश पेटवाल का मानना है कि सरकारें किसी भी दल की हो योजनाएँ बहुत अच्छी होती हैं, लेकिन वह सिर्फ फ़ाईलो मे ही सिमट कर रह जाती हैं । और अगर कुछ काम होता भी है तो सबसे पहले नेताओं के चहेतों का स्किल डेवलेपमेंट हो जाता है, बाकी जनता मुंह ताकती रह जाती है ।  और ऐसा तब होता है जब किसी भी काम मे मोनेटरिंग ठीक से नहीं कारवाई जाती है ।

कुल मिलाकर सत्ता के सौदेबाजों से जनता त्रस्त है, और वह राज्य मे वर्तमान मे लगे राष्ट्रपति शासन को आरामदायक मान रहे हैं ।

फिलहाल राज्य में विकास के बजाय विपक्ष के नेताओं द्वारा सरकार को गिराने की शुरूआत हुई थी ।  जबकि सरकार को

वोट देना हमारी मजबूरी है , फिर चुनाव आएंगे और वो हमारे सामने हाथ जोड़ खड़े हो जाएँगे और उसके बाद 5 साल के लिए गाब हो जाएंगे ।
वोट देना हमारी मजबूरी है , फिर चुनाव आएंगे और वो हमारे सामने हाथ जोड़ खड़े हो जाएँगे और उसके बाद 5 साल के लिए गाब हो जाएंगे ।

बचाने की जुगत में हरीश रावत आगे बढ़ते-बढ़ते खुद ही तथाकथित स्टिंग मे फंस गए ।

उत्तराखंड मे पिछले 16  वर्षों में पहाड़ के विकास के नाम पर,  पहाड़वासी भोलीभाली जनता को भरमाकर उनके वोटों के बूते भाजपा, कांग्रेश की बारी-बारी सरकारें बनती रहीं, लेकिन इनमे से किसी ने कभी भी पहाड़ के दर्द को समझने की कोशिश नहीं की । विधायक से लेकर मंत्री तक उड़न खटोले से नीचे उतरने  को तैयार नहीं हैं । उद्योगविहीन पहाड़ी क्षेत्रों मे सड़क, बिजली, पानी, एवं रोजगार जैसी  बुनियादी सुविधाओं का भारी टोटा बना हुआ है । शिक्षा व्यवस्था चौपट हो रही है,  मूलभूत सुविधावों के अभाव मे गाँव के गाँव खाली हो रहे हैं, स्वास्थ्य सेवाएं दम तोड़ रही हैं । और नेताओं के लिए यह क्षेत्र कामधेनु बनता जा रहा है । जनता को छल कर कभी तिबारी, दंडयाली और ढेपुरा मे सोने वाले नेता अय्याश व मक्कार बन गए हैं । जबकि जनता गरीब से अति गरीब होती जा रही है । उत्तराखण्ड की यह उपलब्धि है 16 वर्षों के राज मे नेताओं की देन से ।

कुछ महीनों के बाद चुनाव भी होंगे और मजबूरन जनता को इन सफेदपोशों को चुनना भी होगा लेकिन यह तय है कि नेताओं को एक बार फिर पहाड़ की जनता के द्वार पर वोट के लिए हाथ फैलाने मे शर्म आएगी नहीं, क्योंकि यह नेता अपना ईमान धर्म सब कुछ नीलाम कर चुके है । इसलिए जनता बोली काश 5 वर्षों तक ऐसा ही राष्ट्रपति शासन लगा रह जाता, पर क्या करें वह तो संभव है ही नहीं ।

*शशि भूषण मैठाणी ‘पारस’

 Youth icon Yi National Creative Media Report 20.04.2016

 

By Editor

13 thoughts on “Dirty Politics in Uttrakhand : उत्तराखंड के नेता अब पहाड़वासियों को खलनायक नजर आने लगे हैं …!”
  1. मैठाणी जी एक ज़मीनी हकीकत को बयां करती विस्तृत रिपोर्ट पढ़ कर मन विचलित हुआ है। सत्ता और उसके खिलाड़ियों के दिमागों में भरी षडयंत्रो और लूट की गंदगी यूँ तो सदियो से जनता को छलनी करती रही है किन्तु जन संकल्पों और अभिलाषाओं से जन्मे राज्य की ऐसी दुर्गति हो जायेगी यह अकल्पनीय था। नेतृत्व का आभाव तो आंदोलन के दौरान भी चर्चा में उठता रहा है।। सच यही है कि सी सिर्फ एनडी तिवारी को छोड़ जिन-जिन का भी हमने परीक्षण किया वे सभी अयोग्य थे और साबित हुए। राष्ट्रपति शासन के पक्ष में जा भावना का उद्वेग राजनेताओ के धन लोलुप आचरण से पैदा हुए अविश्वास और हताशा का परिणाम है। भविष्य कठोर चुनौतिओ से भरा है।

  2. सटीक आंकलन….इस बेहतरीन रिपोर्ट के लिए मुबारकबाद..

  3. प्रिय शशि भूषण जी,
    अत्यधिक स्पष्ट भाषा में पहाड़ की जन भावना प्रस्तुत करने हेतु आपको धन्यवाद के साथ ही अवगत कराना चाहता हूँ पहाड़ों से लेशमात्र लगाव रखने वाले हर तबक़ा राजनीतिज्ञों को उसी घृणा की दृष्टि से देखने लगा है जिस का आपके लेख में वर्णन है। सभी विशुद्ध लुटेरे हैं।
    नमन सहित,
    श्रीकान्त चन्दोला

  4. कड़वा सच हैं रिपोर्ट मैं आज न सरकार हैं न ही शक्तिमान रहा राष्ट्पति शाशन कब है जाये कहा नहीं जा सकता फिर बनेगी जिसकी भी सरकार करेगे वो यही काम जो 16 वे साल तक उत्तरखण्ड के साथ होता आया अब वक़्त आगया हैं जरुरत हैं तीसरे विकल्प की यही हैं उत्तरखण्ड की करूँढ पुकार

  5. A Comprehensive report. The report narates the factual truth.

    Sincere thanks to Maithani ji. Your work is superb.

    Thanks once again for updating.

  6. That is perfect statement about the culprit of our state. These bloody politicians ruined the dreams of simple and loving uttrakhandiis .we are barely looted by our own brothers in mask of our leaders

  7. जमीनी सच्चाई को बयाँ करत हुवा सुंदर विश्लेषण। सर मैं शोशल मीडिया के माध्यम से कई बार कह चुका हूँ ये प्रदेश इस पहाड़ी राज्य की सोच के नेता के अभाव मे जी रहा है पिछले 16 साल और आने वाले समय मे भी दूर दूर तक ऐसा नजर नही आरहा है। यह दुर्भाग्य है इस प्रदेश का कि 16 साल मे 8 मुख्यमंत्री मिले किन्तु सब नक्कारे ही साबित हुवे हैं।

  8. राजनीती की फ़सल मैं इतने नेता उग आए हैं की यह देश कृषिप्रधान न रहकर नेता प्रधान हो गया हैं।
    जो सिर्फ और सिर्फ अपना विकास करना जानते है।
    आपके लेख मैं सत्यता है और इसके लिए आपको बधाई।

  9. Bad luck of Uttarakhand people after so many year’s also we has to face these crises .
    SHAME ON ALL POLITICAL PARTIES

  10. Dear Maithani ji,

    I appreciate your detail survey and report thereupon; while I agree with you in totality.

    The problem with the people of UK is that every one seems to be having political ambition in some form or the other. People, keep away from telling truth. For all responsibilities, are deemed to be down loaded on to the willing worker. In hill even any one with ABC starts talking tall about politics. Participation in politics has become a family claim in Congress, BJP and UKD even. All those who may be distantly related to any political leader incumbent behaves as one themselves.

    Unless business like politics is done away with this situation will never improve.

    Every Uttarakhandi has a meek rivalry with some one or the other be that cast base, or region base. They may have big degrees but their mental horizon is as shrunk as it used to be with their forefathers. The fire though, latent, but is still prevalent for years of existence.

    Until we follow old practices, nothing is going to surface good for good. Crookedness will never leave us. polarization among unity groups will continue surface. Ego in higher highland casts a thoughtfully designed system in 3rd phase of Dwaapar, has set a complete disharmony. Prior to that Indians use to be same cast at par. This cast system has become a basis for vote. The balance is paid, pursued and exploited mandate. The actual social reforming is peacetime job based on equity and equality. The sophisticated redicals do not believe this fair and equal distribution of political powers.
    These days any mediocre student seeing college entrance gate aspire to excel as political leader. They are not prepared to know any repercussions. All Uttrakhandi talk very tall about the problems but have no grey matter to suggest viable solutions. The man with out solution is part of a problems.

    Let us set sail to identify a leader for our consituency who have knowledge to run an office, generally amicable dealing with human asset and customer orientation.
    There are many other factors that can be conveyed gradually to arrive at a proper solution.

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