प्रकृति के साथ मानवीय दखल ।
Youth icon Yi National Creative Media Report
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Humanitarian Intervention : वो बनाना चाहता है उसे अपना गुलाम…!

Pankaj mandoli , Srinagar , Yi Report
Pankaj mandoli , Srinagar , Yi Report

Youth icon Yi Report, 7 July , वो कुदरत को अपना गुलाम बनाना चाहता है। वो चाहता है हवा उसके इसारे पर चले, नदियां उस से पूछ

प्रकृति के साथ मानवीय दखल ।
प्रकृति के साथ मानवीय दखल । फोटो : फाईल 

कर आगे बढे, समुंदर उससे हुक्म का इंतजार करे और पहाड़ अपने जिश्म में सुराग करवाते रहे। वो अपने विज्ञान के बलबूते कुदरत को अपने नियंत्रण में करना चाहता है। बस उसकी यहीं जिद्द आज आम जनमानस पर भारी पड़ रही है।

ब्रह्माण्ड को बनाने वाले ने जो कुछ भी बनाया है। उसके पीछे कोई ना कोई तर्क जरूर है। पानी जिसके बिना धरती पर जीवन की कल्पना तक नहीं की जा सकती। उसके खजाने उसने पहाडों

मानवीय दखल और उसका दुष्परिणाम इस तरह से सामने आता है ।
मानवीय दखल और उसका दुष्परिणाम इस तरह से सामने आता है । फोटो :फाईल 

को दिये है। पहाडों की इन ऊंचाईयो से चलकर समंदर की गहराईयों तक पानी का यह सफर पूरी दुनियां को जीवन की सौगात देती है। लेकिन आज का पढ़ा लिखा मानव कुदरत के इस भेद को मानने के लिए तैयार ही नहीं है। वो तो अपने ज्ञान के बूते इस पानी को कैद करना चाहता है। अब उत्तराखंड की नदियों को ही ले लो। जिन्हें हिमालय व पहाडों की कंदराओं से निकलकर संमदर के साथ मिलना है। ठहरना इनकी फितरत मे है ही नही और कुदरत ने इन्हें रूकने की अनुमति तक नहीं दी है। लेकिन मानव व उसके विज्ञान ने इस पानी से बिजली बनाना  सीख लिया और इन्हें जगह-जगह बांधों में कैद कर दिया। इंसान की मदद के लिए एक हद तक इन नदियों ने उसका साथ भी दिया। लेकिन नदियों की इस मदद को इंसान इनकी कमजोरी समझ बैठा। बस यही भूल हो गयी उससे। यही भूल का नतीजा उत्तराखंड के दामन में जो तबाही वर्ष 2013 में हुई है वो है। जो जान माल का नुकसान आप इन दिनों उत्तराखंड में देख रहे हो वो इसी भूल का नतीजा भर है। भले ही इंसानों का एक तबका तमाम

प्रकृति कभी किसी को नुकसान नहीं पहुंचाती है वह तो अपने क्षेत्र में अपनी रचना रचती रहती है । प्रमाण के तौर पर 2013 की इसी तस्वीर को देख लें नदी के स्थान पर बहुमंजिला धर्मशालाएं बनाई गई है । तब कहा गया था कि नदी ने गोविंद घाट में तबाही मचा दी है । जबकि सच्चाई यह थी इंसान ने नदियों के क्षेत्र में अनावश्यक अतिक्रमण कर लिया था ।
प्रकृति कभी किसी को नुकसान नहीं पहुंचाती है वह तो अपने क्षेत्र में अपनी रचना रचती रहती है । प्रमाण के तौर पर 2013 की इसी तस्वीर को देख लें नदी के स्थान पर बहुमंजिला धर्मशालाएं बनाई गई है । तब कहा गया था कि नदी ने गोविंद घाट में तबाही मचा दी है । जबकि सच्चाई यह थी कि इंसान ने नदियों के क्षेत्र में अनावश्यक अतिक्रमण कर लिया था । फोटो : फाईल 

अध्ययनों के बाद भी यह मानने के लिए तैयार नहीं है लेकिन सदियों का इतिहास पहाडो के सीने में दफन है। पहाडों के साथ जब-जब अत्यधिक छेड-छाड हुई। इंसानों ने कुदरत के साथ ज्यादा बदतमीजी व अभद्रता की है तब-तब कुदरत ने अपने गुस्से का हल्का नमुना पेश किया। वो भी चेतावनी के लिए, लेकिन इंसान कहां मानने वाला। ये तबाही जान, माल का नुकसान, आपने देखा यह कुदरत के उसी गुस्से का नमुना है जो ये कहने की कोशिस कर रहा है कि संभल जाओ ताकि तुम्हें वक्त से पहले कयामत ना देखनी पडे।

*पंकज मैंदोली

Copyright: Youth icon Yi National Media, 03.07.2016

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By Editor

10 thoughts on “Humanitarian Intervention : वो बनाना चाहता है उसे अपना गुलाम…!”
  1. बहुत खूब एकदम सटीक लेख ।
    पंकज मंडोली जी मैं भी आपके विचारो से पूरी तरह इतफ़ाक रखती हूँ।
    समय आगया है की इंसान अपनी हद तय कर ले कुछ चीजे प्राकृतिक स्वरूप् मैं ही ठीक लगती है उन्हें बदला ना जाये वरना उसके विनाशकारी परिणाम तो भुगतने ही होंगे।

  2. पंकज भाई मजा आगया।

  3. It’s real and a big truth of todays but the people are forget it this power is not control ower hand

  4. I agree with you … Once you tried to distroy nature then nature will distroy you for ever

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