दरअसल करीब 60- 70 साल पहले इस पूरे इलाके में अधिकतर इलाका पेड़ विहीन था। धीरे-धीरे उन्होने बांज,बुरांश,सेमल,भीमल और देवदार के पौधे को लगाना शुरु किया। शुरु शुुरु में ग्रामीणों ने इसका काफी विरोध किया यहां तक कि उन्हे कई बार मारा भी गया लेकिन धरती मां के इस हीरो ने अपना जूनून नही छोडा और आज स्थिति ये है कि करीब 1200 हेक्टियर से भी अधिक क्षेत्रफल में उनका द्वारा पूरा जंगल खडा हो चुका है। vishweshwar datt saklani . Youth icon yi award report . Sandeep singh gusain . Uttarakhandदरअसल करीब 60- 70 साल पहले इस पूरे इलाके में अधिकतर इलाका पेड़ विहीन था। धीरे-धीरे उन्होने बांज,बुरांश,सेमल,भीमल और देवदार के पौधे को लगाना शुरु किया। शुरु शुुरु में ग्रामीणों ने इसका काफी विरोध किया यहां तक कि उन्हे कई बार मारा भी गया लेकिन धरती मां के इस हीरो ने अपना जूनून नही छोडा और आज स्थिति ये है कि करीब 1200 हेक्टियर से भी अधिक क्षेत्रफल में उनका द्वारा पूरा जंगल खडा हो चुका है। vishweshwar datt saklani . Youth icon yi award report . Sandeep singh gusain . Uttarakhand

मिलिए पहाड़ के इस मांझी से जिसने स्थापित कर दिया अमिट कीर्तिमान । त्याग बलिदान और संघर्ष की ऐसी दास्तां आपने शायद ही कहीं देखी होगी ।

 

 

यकीन करना मुश्किल है पर एकदम सच है कि एक ऐसा इंसान जिसने अपनी जिद्द में ही अपना पूरा जीवन खपा दिया । बस अपनी धुन का पक्का यह इंसान जुगाड़ करना नहीं सीख पाया । इनकी यह सबसे बड़ी कमी थी कि यह काम के प्रति ईमानदार थे । इन्होंने नाम या सम्मान पाने के लिए काम नहीं किया । अगर किया होता तो शायद इस इलाके तस्वीर भी ऐसी न होती जो आज दिखाई दे रही है, और न ही इनकी कोई कहानी बनती फिर होते यह भी अन्य पर्यावरण विदों की तरह देश विदेश में मंचों की शोभा बढ़ाने वाले या कई राष्ट्रीय अंतराष्ट्रीय सम्मानों रिकार्ड भी इनके नाम पर दर्ज होते ।

 

संदीप सिंह गुसाईं । z news । uttarakhand । Sandeep Singh Gusain । youth icon yi media यूथ आइकॉन
संदीप सिंह गुसाईं

क्या कोई इन्सान वृक्ष से इतना लगाव और प्यार कर सकता है? एक ऐसा ग्रीन हीरो जिन्होंने अपना पूरा जीवन धरती मां के लिए समर्पित कर दिया.एक ऐसा तपस्वी जिसकी मेहनत एक पूरी घाटी को हरियाली में बदल चुकी है। एक वनऋषि की कहानी जिन्होनें मात्र 8 साल की उम्र से पेड लगाने शुरु किए और अब तक 50 लाख से अधिक पेड लगा चुके है।ये पहाड का मांझी है जिसने अपनी मेहनत से विशाल जंगल तैयार कर दिया।

फोटो में दिखाई दे रहे यह सख्स हैं विश्वेश्वर दत्त सकलानी जो अपनी उम्र के अंतिम पडाव पर हैं ।आंखो की रोशनी जा चुकी है जुबान से लडखडाते हुए केवल यही शब्द निकलते है वृक्ष मेरे माता पिता,वृक्ष मेरे संतान, वृक्ष मेरे सगे साथी …! अब जरा सोचिए कि विश्वेश्वर दत्त सकलानी ने किन परिस्थितियों में अपनी सकलाना घाटी को हरा भरा करने में कितनी मेहनत की।पुजार गांव में जन्मे विश्वेश्वर द्त्त सकलानी का जन्म 2 जून 1922 को हुआ था।

Visheshwar Datt Saklani : मिलिए पहाड़ के इस मांझी से जिसने स्थापित कर दिया अमिट कीर्तिमान । त्याग बलिदान और संघर्ष की ऐसी दास्तां आपने शायद ही कहीं देखी होगी । यकीन करना मुश्किल है पर एकदम सच है कि एक ऐसा इंसान जिसने अपनी जिद्द में ही अपना पूरा जीवन खपा दिया । बस अपनी धुन का पक्का यह इंसान जुगाड़ करना नहीं सीख पाया । इनकी यह सबसे बड़ी कमी थी कि यह काम के प्रति ईमानदार थे । इन्होंने नाम या सम्मान पाने के लिए काम नहीं किया । अगर किया होता तो शायद इस इलाके तस्वीर भी ऐसी न होती जो आज दिखाई दे रही है, और न ही इनकी कोई कहानी बनती फिर होते यह भी अन्य पर्यावरण विदों की तरह देश विदेश में मंचों की शोभा बढ़ाने वाले या कई राष्ट्रीय अंतराष्ट्रीय सम्मानों रिकार्ड भी इनके नाम पर दर्ज होते । sandeep singh gusain . Youth icon Yi Award report . Uttarakhand .
Visheshwar Datt Saklani :  त्याग बलिदान और संघर्ष की ऐसी दास्तां आपने शायद ही कहीं देखी होगी । यकीन करना मुश्किल है पर एकदम सच है कि एक ऐसा इंसान जिसने अपनी जिद्द में ही अपना पूरा जीवन खपा दिया । बस अपनी धुन का पक्का यह इंसान जुगाड़ करना नहीं सीख पाया । 

बचपन से विश्वेश्वर दत्त को पेड लगाने का शौक था और वे अपने दादा के साथ जंगलों में पेड लगाने जाते रहते थे।इनका जीवन भी माउन्टेंन मैन दशरथ मांझी की तरह है जिन्होंने एक सडक के लिए पूरा पहाड़ खोद दिया था । दरशत मांझी की तरह विश्वेश्वर दत्त सकलानी के जिन्दगी में अहम बदलाव तब आया जब उनकी पत्नी शारदा देवी का देहांत हुआ।1948 को हुई इस घटना के बाद उनका लगाव वृक्षों और जंगलों की होने लगा।अब उनके जीवन का एक ही उद्देश्य बन गया केवल वृक्षारोपण ।

अब सोचिए जिसने धरती मां के लिए अपनी आंखो की रोशनी गंवा दी, बीमारी के बावजूद जंगलों में पेड़ लगाने का उनका जूनून कम नही हुआ तो फिर शरीर ने भी साथ छोड दिया अब वृक्षमानव की उपाधि से नवाजे गये विश्वेश्वर दत्त सकलानी अपने पैतृक गांव में रहते है।

दरअसल करीब 60- 70 साल पहले इस पूरे इलाके में अधिकतर इलाका पेड़ विहीन था। धीरे-धीरे उन्होने बांज,बुरांश,सेमल,भीमल और देवदार के पौधे को लगाना शुरु किया। शुरु शुुरु में ग्रामीणों ने इसका काफी विरोध किया यहां तक कि उन्हे कई बार मारा भी गया लेकिन धरती मां के इस हीरो ने अपना जूनून नही छोडा और आज स्थिति ये है कि करीब 1200 हेक्टियर से भी अधिक क्षेत्रफल में उनका द्वारा पूरा जंगल खडा हो चुका है। vishweshwar datt saklani . Youth icon yi award report . Sandeep singh gusain . Uttarakhand
करीब 60- 70 साल पहले इस पूरे इलाके में अधिकतर क्षेत्र पेड़ विहीन था। धीरे-धीरे उन्होने बांज,बुरांश,सेमल,भीमल और देवदार के पौधे को लगाना शुरु किया। शुरु शुुरु में ग्रामीणों ने इसका काफी विरोध किया यहां तक कि उन्हे कई बार मारा भी गया लेकिन धरती मां के इस हीरो ने अपना जूनून नही छोडा और आज स्थिति ये है कि करीब 1200 हेक्टियर से भी अधिक क्षेत्रफल में उनका द्वारा पूरा जंगल खडा हो चुका है। 

 

अब उनकी सांसे भी पेडों की बांते करती है। अब आपको बताते है कि विश्वेश्वर दत्त सकलानी ने कैसे पूरी सकलाना घाटी की तस्वीर बदल दी। दरअसल करीब 60- 70 साल पहले इस पूरे इलाके में अधिकतर इलाका पेड़ विहीन था। धीरे-धीरे उन्होने बांज,बुरांश,सेमल,भीमल और देवदार के पौधे को लगाना शुरु किया। शुरु शुुरु में ग्रामीणों ने इसका काफी विरोध किया यहां तक कि उन्हे कई बार मारा भी गया लेकिन धरती मां के इस हीरो ने अपना जूनून नही छोडा और आज स्थिति ये है कि करीब 1200 हेक्टियर से भी अधिक क्षेत्रफल में उनका द्वारा पूरा जंगल खडा हो चुका है।
विश्वेश्रर दत्त सकलानी ने अपना पूरा जीवन पहाड़ के लिए दे दिया।पेंड़ों और धरती के लिए त्याग बलिदान और संघर्ष की ऐसी दास्ता आपने शायद ही कहीं देखी होगी।पुजार गांव के बुजुर्ग बताते है कि जब उनकी बेटी का विवाह था और कन्यादान होने जा रहा था तो उस समय में वो जंगल में वृक्षारोपण करने गए थे। विश्ववेश्वर दत्त सकलानी का जीवन उन पर्यावरण विदों के लिए आएना है जो अपने जुगाड के कारण बडे बडे अवार्ड हथिया लेते है लेकिन जमीन में दिखाने के लिए कुछ नही है।

 

साभार : Sandeep Singh Gusain . FB wall . 

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2 thoughts on “Visheshwar Datt Saklani : मिलिए पहाड़ के इस मांझी से जिसने स्थापित कर दिया अमिट कीर्तिमान । त्याग बलिदान और संघर्ष की ऐसी दास्तां आपने शायद ही कहीं देखी होगी ।”
  1. pranaam,pranaam,pranaam,kash ap ka vansh phale.
    I mean we need more humans with your dedications to save mother earth

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